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( २२८ )
समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
दक्षिण दिक्षि अधिका, असंख्यात गुण एह । तिहां पुष्फावकीरण, नारिक ना बहु गेह ॥११॥ नारकी ना बहु गेह तिहां छइ,असंख्यात गुण पहुला। दक्षिण दिशिभगवन्तइ भाख्या,कृष्ण पक्षी पिण बहला ॥ कुण जाणे एजीव घणा किहां, थोड़ा पणि किण ठामइ । वीतराग ना वचन तहत्ति करि, मानीजइ हित कामइ ॥१२॥
ढाल ३ बेकर जोड़ी ताम-एड्नी पृथ्वीकाय ना जीव दक्षिण दिशि,
थोड़ा नरकावास भवन घणा ए। भवन नइ नरकावास ते थोड़ा तिणइ,
अधिका उत्तर दिशि तणाए ॥१३॥ लवण मंइ शशि रवि द्वीप तिण पूरब दिशि,
पृथ्वी जीव अधिक कह्या ए। अधिकउ गोतम द्वीप पश्चिम दिशि काउ,
तिण अधिका जीव सद्दह्या ए॥१४॥ पूरब पश्चिम जाण भुवन पति देव थोड़ा,
___ भवन थोड़ा तिहां ए। उत्तर अधिक असंख दक्षिण ते थकी,
बहु बहु भवन अछइ इहाए ॥१५॥ पूरब नहीं पोलाड़ि थोड़ा व्यंतर अधिक,
अधोग्राम पश्चिमइ ए ।
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