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समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
शत्रुजय मण्डन युगादिदेव गीतम
राग-केदारा गउड़ी इया मो जनम की सफल घरी री। शत्रञ्जय शिखरि ऋषभ जिन भेटे,
पालीताना की पाज चरी री ।इया० ॥१॥ प्रभु के दरस पाप गये सब, ___नरग त्रिजंच की भीति टरी री। इया सिद्ध क्षेत्र ऊपरि शुभ भाव धरि,
. मुनिवर कोरि मुगति कु वरी री ।इया०।२। अद्भुत चैत्य मनोहर मूरति,
करु हुँ प्रणाम प्रभु पाय परी रो। समयसुन्दर कहै आज श्राणंद भयउ,
श्री शत्रुञ्जगिरि जात्र करी री ।इया०।३।
विमलाचल मण्डन आदि जिन स्तवन
राग-तोड़ी ऋषभ की मेरे मन भगति वसीरी। ऋ० । मालती मेघ मृगांक मनोहर,
मधुकर मोर चकोर जिसी री । ऋ० ११॥ प्रथम नरेसर प्रथम भिक्षाचर,
प्रथम केवलघर प्रथम ऋषी री।
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