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________________ समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि ( १६ ) भोग भी तेरो अनंत जोग भी तेरो अनंत, प्रयोग तेरो अनंत प्रताप प्रचण्ड जु ।। झान भी तेरो अनंत दर्शन भी तेरो अनंत, चरित्र भी तेरो अनंत आज्ञा अखण्ड जु । सुन्दर कहइ सत्यमेव (सुन्दर) सुरनर करइ सेव, अनंत तीर्थकर देव तारण तरण्ड जु ॥१४॥ श्रेयांस नी परै दान तुम्हे घउ, जिम संसार समुद्र तरौ । पालउ शील सती सीता जिम, तप सुन्दरि सरिखौ आदरौ।। भरत नाम चक्रवर्ती तणी परि, भवियण मन भावना धरौ । समयसुन्दर कहइ समवशरण मांहि धर्मनाथ कहै धर्म करो।१५॥ विश्वसेन पिता माता अचिरा, मृग लांछन सोवन तनु कांति । चउसठ इन्द्र मिलोन्हवराव्यो, मेरि उपरि मनि प्राणी खांति ।। मरकी गई प्रजा सुख पाम्यौ, देश मांहि थई सुख शान्ति । समयसुन्दर कहै मात पिताए, पुत्र तणौदीधौ नाम शांति॥१६॥ तीन छत्र सिर ऊपर सोहइ, सुर चामर ढालइ सविहाण । दिव्यनाद सरदुन्दुभि वाजइ, पुष्पवृष्टि पणि जानु प्रमाण । कनक सिंहासण चारु चेइतरु, भामंडल झलकै जिम भाण । समयासुन्दर कहइ समोसरण में, कुन्थुनाथ इम करइ वखाण।१७) चुलसी लाख अश्व रथ हाथी, छन्नू कोड़ि पायक परिवार । बालीस साहस मुकुट-बद्ध राजा, चौसठ सहस अंतेउर मार ।। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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