________________
( ८ )
समयसुन्दरकृतिकुसुमाञ्जलि
१४६.
"
१४८.
"
१४४. गिरनार मंडन नेमि गी.,, ३ औ देखत उँचउ गिरनारि १२५ १४५. नेमिनाथ गीतम् ,, ४ छपनकोड़ि यादव मिलि आए १२५
, ३ उग्रसेन की अंगजा १२६ १४७. ,,
,, ४ चन्दइ कीधउ चानणउ रे १२६ , ३ नेमजी मन जाणइ के सर
जण हारा १२० १४६. , ,, ६ सामलियउ नेमि सुहावइ रे
सखियां १२७ १५०. , गूढा गीतम् , ३ सखि मोऊ मोहन लाल
मिलावई १२८ १५१. , गीतम् अपूर्ण नेमि नेमि नेमि नेमि १२८ १५२. ,, शृङ्गार वैरा.गीत ,, ४ कृपा अमूलिक कांचली रे १२६ १५३. , चारित्र चूनड़ी , २ तीन गुपति ताण तण्यउ रे १३० १५४. , गूढा गीतम् , ३ लालण को लयु री समझाइ १३० १५५. , गीतम् , ३ एतनी बात मेरे जीउ
खटकइरी १३० १५६ नेमिनाथ गीतम् गा. ५ सखि यादव कोड़ि सुं परवरे १३१ १५७ , , गा. ३ विण अपराध तजी मुनइ
बालम १३२ १५८.सिंधी भाषामय नेमिस्त.गा.४ साहिब मइडा चंगी सूरति १३२ १५६. नेमि. राजी. सवै. (त्रुटित)... (प्रारंभ के ८॥ कम व अन्त
के त्रुटित) १३३ १६०.पार्श्वनाथ अनेकतीर्थ स्त.गा.४हो जग मईपास जिणंदजागइ१४३ १६१.जेसलमेर पार्श्व.गी.गा. ३ जेसलमेर पास जुहारउ १४४ १६२. फलवर्द्धि पार्श्व स्तवन गा.१० फलवधि मण्डण पास १४४ १६३. " , गा.४ प्रभु फलवधी पास परभाति
पूजउ १४५ १६४. सप्तदश राग गर्भित जेसल.
पार्श्वस्त. गा.४७ (सं.१६५६) पुरिसादानी परगढ़उ १४६
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org