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________________ ( ११ ) रचनाएँ भी देखने को मिली । हमने बड़े उत्साह के साथ उन सब की नकलें करलीं। उस समय की लिखी हुई स्तवन सज्झाय संग्रह की दो कापियां आज भी हमें उस समय की हमारी रुचि और प्रवृत्ति की याद दिला रही हैं। साथ ही दूसरे कवियों की जो छोटी छोटी सुन्दर रचनाएँ हमें मिलीं, उनके नोट्स भी दो छोटी-कॉपियों में लेते रहे, जो अब तक हमारे संग्रह में हैं। कविवर की रचनाएं इतनी अधिक प्रचलित हुई व इतनी बिखरी हुई हैं कि जिस किसी संग्रहालय में हम पहुंचते, वहां कोई न कोई अज्ञात छोटी मोटी रचना मिल ही जाती । इसलिये हमारं। शोध प्रवृत्ति को बहुत वेग मिला। बड़े-बड़े ही नहीं,छोटे-छोटे भण्डारों क फुट कर पत्रों और गुटकों को भी हमने इसी लिये छान डाला कि उनमें कविवर की कोई रचना मिल जाय । आशानुरूप हर जगह से कुछ न कुछ मिल ही जाता । इस तरह वर्षों के निरन्तर लगन और श्रम से इस सग्रह को हम तैयार कर सके हैं। कविवर के सम्बन्ध से ही हमें बड़े बड़े विद्वानों से पत्र व्यवहार करने, मिलने और भण्डारों को देखने का सुयोग मिला। अन्यथा पांचवीं कक्षा तक के विद्यार्थी और व्यापारी घराने में जनमे हुए साधारण व्यक्ति के लिये वैसे सम्पर्कों की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इस लिये कविवर का जितना ऋण हमारे पर है, उससे थोड़ा सा उऋण होने का हमारा यह प्रकाशन-प्रयास है। देसाई के उल्लिखित कविवर की कई रचनाओं के सम्बन्ध में हमें उन्हें पूछ-ताछ करना आवश्यक था । इसलिये हमने अपनी जिज्ञासा कई प्रश्नों के रूप में उन्हें लिख भेजी। किसी भी साहित्यिक विद्वान से पत्र व्यवहार करने का हमारा यह पहला मौका था। कई महीनों तक उनका उत्तर नहीं आया तो वहा विचार और निरुत्साह होने लगा। पर कई महीनों बाद (ता० १६-१-३० को) उनका एक विस्तृत पत्र आया और फिर तो हमारा और उनका घनिष्ट सम्बन्ध होगया। उनके करीब ५० महत्त्वपूर्ण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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