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महोपाध्याय समयसुन्दर
येषां वाणिविलासानां, गीतकाव्यादियोजना। प्रकाशते कवीशत्वं, स्वगच्छ-परगच्छभिः।
तेषां मुख्या शिष्याः, चतुर्थपरमेष्ठिनः कलाचतुराः। कलिकालकालिदासा; उच्चाल सरस्वतीरूपाः।
सुसाधु हंस समयो सुरचन्द, शीतल वचन जिम शारद चन्द। ए कवि मोटा, बुद्धि विशाल, ते आगलि हुँ मूरख बाल ।
( कवि ऋषभदास) ज्ञानपयोधि प्रबोधि वारे, अभिनव शशिहर प्राय, कुमुद चन्द्र उपमान वहेरे, समयसुन्दर कविराय । ततपर शास्त्र समरथिवारे, सार अनेक विचार, वलि कलिन्दिको कमलिनी रे, उल्लास दिनकार ।
__ (पं० विनयचन्द्र ) श्री नाहटा जी ने महोपाध्याय समयसुन्दर के सम्बन्ध में लिखने का आग्रह कर, मुझे कवि के यशोगान का अवसर प्रदान किया, इसके लिये मैं नाहटा बन्धु को हार्दिक साधुवाद देता हूँ।
३१-८-१९५५ विवेक वर्धन सेवाश्रम
श्यामासूनुमहोपाध्याय विनयसागर
महासमुन्द (म०प्र०) )
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