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________________ महोपाध्याय समयसुन्दर यमकबद्ध-श्लेषवद्ध-शृङ्गाटकबद्ध-चलित शृङ्खलाबन्ध-कपाटशृङ्खलाबन्ध स्तवन-द्विअर्थीयुक्तस्तव (पृष्ट १८६ से १६६, ३५७, ६१४)। नानाविध श्लेषमय आदिनाथ स्तोत्र (पृ.६१५), नानाविध काव्य जातिमय नेमिनाथ स्तव (पृ० ६१६), समस्यामय पार्श्वनाथ बृहस्तव (पृ० ६१६ ), यमकमय पार्श्वनाथ लघुस्तष (पृ० ६२१), यमकमय महावीर बृहत्तव ( पृ० ६२२)। अष्टक और पादपूर्ति साहित्य भी देखने योग्य है : तृष्णाष्टक, रजोष्टक, उदच्छत्सूर्यविम्बाष्टक, समस्याष्टक, समस्या-पूति (पृष्ठ ४६४ से ५०० तक), पादपूर्ति रूप ऋषभ भक्तामर काव्य (पृष्ठ ६०३ ) समस्या-पूर्ति में कवि-कल्पना की उड़ान तो देखिये:प्रभुस्नात्रकृते देवा नीयमानान् नभे घटान् । रौप्यान् दृष्ट्वा नराः प्रोचुः शतचन्द्रनभस्तलम् ॥१॥ रामया रममाणेन कामोद्दीपनमिच्छता । प्रोक्तं तच्चारु यद्यवं शतचन्द्रनभस्तलम् ॥२॥ हस्त्यारोहशिरस्त्राणश्रेणिमालोक्य संगरे। पतितो विह्वलोऽवादीत् शतचन्द्रनभस्तलम् ॥४॥ भुक्तधत्त रपूरत्वाभ्रान्तदृष्टिरितस्ततः । अपश्यत्कोऽपि सर्वत्र शतचन्द्रनमस्तलम् ॥६॥ इस प्रकार अनेक विध दृष्टियों से देखने के पश्चात् हम निर्विवाद कह सकते हैं कषि असाधारण मेधा-सम्पन्न सर्वतोरखी प्रतिभावान था और था एक साहित्य-यज्ञ का महास्रष्टा भी। इस स्रष्टा की न जाने कितनी कृतियाँ इस साहित्य-संसार से विदा हो चुकी होंगी और न जाने श्राज जो प्राप्त हैं, वे भी सरस्वती Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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