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________________ महोपाध्याय समयसुन्दर ( ६६ ) अनेकार्थ और कोष कहा जाता है कि एक समय सम्राट अकबर की विद्वरसभा में किसी दार्शनिक विद्वान ने जैनों के आगम सम्बन्ध की 'एगस्स मुत्तम्स अनंतो अत्थो' 'एक सूत्र के अनन्त अर्थ होते हैं। पर व्यांग कसा ।। उससे तिलमिलाकर, कवि ने अपने शासन की सुरक्षा और प्रभावना, सर्वज्ञ के सवेज्ञता और आगम साहित्य की अक्षुण्णता रखने के लिये सम्राट से कुछ समय प्राप्त किया। इसी समय में कवि ने "राजा नो द द ते सौ रूयम्' इन आठ अक्षरों पर आठ लाख अर्थों की रचना की। इस ग्रन्थ का नाम कवि ने 'अर्थरत्नावली' रखा और सं० १६४६ श्रावण शुक्ला १३ की सांय को जिस समय अकबर ने काश्मीर विजय के लिये श्रीराज श्री. रामदासजी की वाटिका में प्रथम-प्रवास किया था, वहीं समस्त 1 उ० रूपचन्द्र ( रत्नविजय ) लिखित एक पत्रानुसार । + मूलतः अर्थ १० लाख किये थे किन्तु पुनरुक्ति आदि का परि मार्जन कर ८ लाख ही अर्थ सुरक्षित माने गये हैं। + "संवति १६४६ प्रमिते श्रावण मुदि १३ दिनसन्ध्यायां 'कश्मीर' देशविजयमुद्दिश्य श्रीराज-श्रीरामदासवाटिकायां कृत प्रथमप्रयाणेन श्रीअकबरपातिसाहिना जलालुद्दीनेन अभिजातसाहिजातश्रीसलेमसुरत्राणसामन्तमण्डलिकराजराजितराजसभायां अनेकविधयाकरणतार्किकविद्वत्तमभटसमक्षं अस्मद्गुरुवरान युगप्रधानखरतरभट्टार कश्रीजिनचंद्रसूरीश्वरान आचार्यश्रीजिनसिंहसरिप्रमुखकृतमुखसुमुखशिष्यवातसपरिकरान् असमानसन्मानबहुमानदानपूर्व समाहूय अयमष्टलक्षार्थी ग्रन्थो मत्पााद् वाचयाचक्रे ऽवकेण चेतसा। ततस्तदर्थश्रवणसमुत्पन्नप्रभूतनूतनामोदातिरेकेण सजातचित्तचमत्कारेण बहुप्रकारेण श्रीसाहिना Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003810
Book TitleSamaysundar Kruti Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year1957
Total Pages802
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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