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महोपाध्याय समयसुन्दर
चूर्णि, यतिजीत कल्पपूत्र बृहद्वृत्ति, विशेष कल्पचूर्णि, देवधिकृता आवश्यक चूर्णि, श्राद्धविधि प्रकरण भाष्य, बामदेवसूरि कृत प्रमावक चरित, विजयचन्द्रसूरि कृत तपागच्छ प्रबन्ध, भावहडा गुरुपर्वक्रम, छापरीया पूनमीया-साधुपूनमीया गच्छ की पट्टालिये, देवसुन्दरसूरि कृत समाचारी, बृहद्गच्छी समाचारी, उमास्वाति कृत आचारवल्लभ और प्रतिष्ठा-कल्प, पादलिप्ताचार्य कृत प्रतिष्ठा कल्प, नागपुरीय तपागच्छ का प्रत्याख्यान भाष्य, पीपलिया उदयरत्न कृत जीवानुशासन, मानदेवसूरि कृत कुलक, वधेमानसरि कृत कथाकोष, देवधर प्रबन्ध आदि ग्रन्थ आज उपलब्ध नहीं है। अतः मनीषियों का कर्तव्य है कि इन अप्राप्त ग्रन्थों का अनुसंधान करें।
वैधानिकता
जिस चैत्यवास का खण्डन कर आचार्य जिनेश्वर ने सुविहित-विधिपक्ष-खरतर गच्छ का निर्माण किया था और जिसकी नींव दृढ़ करने के लिये आचार्य जिनवल्लभ, प्राचार्य जिनदत्त, आचार्य मणिधारी जिनचन्द्र और आचार्य जिनपति ने वैधानिक ग्रन्थ निर्माण किये थे। आचार्य जिनप्रभ ने विधि प्रपा और रुद्रपल्लीय
आचार्य वर्धमान ने आचार दिनकर रचकर जिसके अनुष्ठानों की वैधानिकता स्थापित की थी। वही गच्छ ४-५ शताब्दियों पश्चात् पुनः शैथिल्य के पन्जे में फंस चुका था जिसका उद्धार युगप्रधान प्राचार्य जिनचन्द्रसूरि ने किया था, किन्तु जिसकी वैधानिक शास्त्रीय परम्परा पुनः स्थापित न कर पाये थे और इधर अन्य गच्छीयों ने ( जिसमें विशेषकर तपागच्छ वालों ने) इस गच्छ की मान्य परम्पराओं पर कुठाराघात करना प्रारम्भ किया था। उसकी रक्षा के लिये तथा मर्यादा अक्षुण्ण और प्रतिष्ठित रखने के लिये १ पद-व्यवस्था कुलक।
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