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________________ सम्मतिप्रकरण-नयकाण्ड १ अत एव कृतकत्वादयोऽपि हेतवो वस्तुस्वभावाः परिणामानभ्युपगमवादिनां न सम्भवन्ति । तथाहि-अपेक्षितपरव्यापारो हि भावः स्वभावनिष्पत्तौ कृतक उच्यते, सा च परापेक्षा एकान्तनित्यवदेकान्ताऽनित्येऽप्यसम्भविनी, तदपेक्षाकारणकृतस्वभावविशेषेण विवक्षितवस्तुनः सम्बन्धोऽपि नोपपद्येत, स्वभावभेदप्रसक्तेः । अभेदे वाऽपेक्ष्यमाणादपेक्षकस्य सर्वथाऽऽत्मनिष्पत्तिप्रसंगात् । अतः स्वभावभिन्नयोः प्रत्यस्तमितोपकार्योपकारक स्वभावयोर्भावयोः सम्बन्धानुपपत्तेः 'हास्येदम्' इति व्यपदेशस्यानुपपत्तिः । यदि पुनरपेक्षमाणस्य तदपेक्ष्यमाणेन व्यतिरिक्तमुपकारान्तरं क्रियेत, तत्सम्बन्धव्यपदेशार्थ तत्राप्युपकारान्तरं कल्पनीयमित्यनवस्था सकलव्योमतलावलम्बिनी प्रसज्येत । तस्मानित्याऽनित्यपक्षयोरर्थक्रियालक्षणं सत्त्वम् कृतकत्वं वा न सम्भवतीति यत् किश्चित् सत् कृतकं वा तव सर्व परिणामि, इत. रथाऽकिश्चित्करस्याऽवस्तुत्वप्रसङ्गानभस्तलारविन्दिनीकुसुमवत् ।। विरोध है, अरे, क्षणिक भाव का भी उसके साथ विरोध है ही। वह इस प्रकार: - क्षणिकवाद में कार्य और कारण में क्रमिकत्व का ही सम्भव नहीं है क्योंकि क्षणिक वाद में कारण-कार्य का समान काल तो हो नहीं सकता और पूर्वापर भाव मानने में कालभेद हो जाता है, कालभेद से जन्य-जनकभाव क्षणिक पदार्थ में विरुद्ध है। उदा० चिरपूर्व में स्वर्गत पिता (रूप से अभिमत व्यक्ति) और चिर भविष्य में उत्पन्न पुत्र (रूप से अभिमत व्यक्ति,) इन दोनों में पिता-पुत्र भाव (अर्थात् जन्यजनक है । तथा भावि में उत्पन्न होने वाले पदार्थ को भूतकालीन भाव की अपेक्षा भी नहीं हो सकती क्योंकि भविष्यतकालीन में भतकालीन भाव न किसी अतिशय का आधान कर सकता है, न तो उसमें से किसी अतिशय का परिभ्रंश करा सकता है, जैसे नित्य पदार्थ में किसी भी अतिशय का आधान या परिभ्रंश शक्य नहीं होता । जो पदार्थ अन्य भाव से किसो भो अतिशय को प्राप्त नहीं करता वह उम अन्य भाव की अपेक्षा भी नहीं रखता है अतः उन दोनों में क्रम होने की सम्भावना भो नहीं रहती। यदि कहें कि उदासीन भाव से अतिशयाधान न होने पर भी जनक पदार्थ से जन्य पदार्थ में अतिशयाधान हो सकता है अत: उन दोनों में क्रम की सम्भावना हो सकेगी- तो यह ठीक नहीं, क्योंकि क्रम मानने पर कालभेद मानना होगा और भिन्नकालीन दो पदार्थ में तो जन्यजनकभाव ही नहीं घट सकता, यह भी अभी कह आये हैं। क्रम का जैसे सम्भव नहीं है वैसे हो कारण-कार्य में समानकालता भी संभव नहीं है । समानकालीन दो वस्तु में अन्योन्य अपेक्षाभाव न होने से हेतु-फल भाव ही घटता नहीं है जैसे दायें बायें गोशृंग में। [ परिणामवादस्वीकार के विना कृतकत्वादि की अनुपपत्ति ] क्षणिक भावों में अर्थक्रियाकारित्व का उपरोक्त रीति से सम्भव न होने से वस्तुस्वभावात्मक कृतकत्वादि हेतु भी परिणामवाद न मानने वाले क्षणिक वादीयों के मत में नहीं घट सकते। वह इस प्रकार:-जिस पदार्थ को अपने स्वभाव की निष्पत्ति में परकीय व्यापार को अपेक्षा रहे वह कृतक कहा जाता है। किन्तु एकान्तनित्यपदार्थ को परापेक्षा होना जैसे सम्भव नहीं है वैसे एकान्त अनित्य पदार्थ को भी वह सम्भव नहीं है। कदाचित् उसको परापेक्षा है यह मान ले फिर भी उसके अपेक्षाकारण से जिस स्वभाव विशेष का आधान किया जायेगा उस स्वभावविशेष के साथ विवक्षित अनित्य पदार्थ का सम्बन्ध भी घट नहीं सकता है, क्योंकि स्वभावविशेष का सम्बन्ध मानने पर स्वभावभेदमूलक वस्तुभेद की आपत्ति होती है। अपेक्षा कारण से आधान किये जाने वाले स्वभावविशेष को यदि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003801
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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