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________________ प्रथमखण्ड-का० १-ईश्वरकतृ त्वे उ०पक्ष: ४२७ साधनस्य नावकाशः स्थलैकरूपावयव्यभावेऽपि ? यदि चावयविनोऽभावे परमाणनामप्यभावप्रसक्तेः प्रतिभासाभावेन प्रसंगसाधनानवकाशः प्रतिपाद्येत तदा सुतरां परमाणुरूपस्य ज्ञानरूपस्य चार्थस्याभावे कार्यत्वादिलक्षणस्य हेतोरात्रयासिद्धतादोषः।। बाह्यार्थनयेन चास्माभिराश्रयासिद्धतादोषात् कार्यत्वलक्षणाद्धेतोर्नेश्वरसिद्धिरिति प्रतिपादयितुमभिप्रेतम् , यदि पुनविज्ञान-शून्यवादानुकूलं भवताऽप्यनुष्ठीयते तदा साध्य-दृष्टान्तमि-साध्य. साधनधर्मादीनामनुमित्यङ्गभूतानां सर्वेषामप्यसिद्धः कुतः उपन्यस्तप्रयोगादीश्वरसिद्धि: ? ! तदेवं तन्वादिलक्षणस्य कार्यत्वादिहेत्वाश्रयस्यावयविनोऽसिद्धराश्रयाऽसिद्धो हेतुः।। ___ तथा 'बुद्धिमत्कारणम्' इति साध्यनिर्देशे 'बुद्धिमत्' इति मतुबर्थस्य साध्यधर्मविशेषणस्यानुपपत्तिः, तज्ज्ञानस्य ततो व्यतिरेकेऽकार्यत्वे च 'तस्य' इति सम्बन्धानुपपत्तेः । तद्गुणत्वात् तत्तस्य' इति चेत् ? न, कार्यत्वे व्यतिरेके च तस्यैव तद्गुणो नाकाशादेः' इति व्यवस्थापयितुमशक्तेः। 'समवायो व्यवस्थाकारी'ति चेत् ? न, तस्यापि ताभ्यामन्तिरत्वे स एव दोष:-ध्यतिरेके समवायस्यापि सर्वत्राऽविशेषाद न ततोऽपि तद्वयवस्था । अथ 'ईश्वरात्मकार्यत्वाद् ईश्वरात्मगुणस्तज्ज्ञानम् । उत्तरपक्षी:- यह संपूर्ण कथन तथ्यहीन है । [निरन्तर उत्पन्न परमाणुवों से स्थूलादि प्रतिभास की उपपत्ति ] अवयवी न होने पर भी निरन्तर उत्पन्न अर्थात् विना किसी व्यवधान से अवस्थित, एक-दूसरे से संलग्न, घटादि आकार में परिणत ऐसे परमाणु तो विद्यमान हैं, उनके ग्राहक रूप में ज्ञानपरमाणु भी उसी ढंग से उत्पन्न होते हैं और वे उन परमाणुओं का ग्रहण करते हैं । इस रीति से न तो बाद्यार्थ के अभाव का प्रसंग ही है, न तो उसके प्रतिभास के अभाव का प्रसंग है, तो फिर तन्मूलक प्रसंगसाधन को अवकाश क्यों नहीं होगा ?, स्थूल-एक स्वरूपवाला अवयवी भले न हो ! । अगर आप कहते हैं कि'अवयवो न होने पर परमाणु का अभाव प्रसक्त होगा, उससे प्रतिभास का अभाव आ पडेगा, अत: प्रसंगसाधन अवकाश नहीं रहेगा'- इत्यादि, तब तो हमारी इष्टसिद्धि अत्यंत सम्भवारूढ बन जाती है क्योंकि परमाणु और ज्ञानरूप अर्थ के अभाव में ईश्वरकर्तृत्व साधक कार्यत्वरूप हेतु भी आश्रयासिद्धि स्वरूपादि आदि दोषों से ग्रस्त हो जायेगा। उपरांत, हमने तो यहाँ बाह्यार्थ के अभ्युपगम से प्रतिपादन करने का अभिप्राय रखा है कि 'आश्रयासिद्धिदोषग्रस्त होने से कार्यत्वरूप हेतु से ईश्वर की सिद्धि अशक्य है'। किन्तु जब आप स्वयं ही विज्ञानवाद और शून्यवाद को सहायक स्थिति पैदा कर रहे हैं, तब तो साध्यधर्मी, हष्टान्तधर्मी, साध्य-हेतु आदि धर्म ये सब जो अनुमिति के अंगभूत है' उनकी भी असिद्धि अनायास आपन्न होती है, तब आपने जो ईश्वरसिद्धि के लिये अनुमान प्रयोग का उपन्यास किया है उससे वह कैसे हो सकेगी ? ___ इस प्रकार कार्यत्वादि हेतु का आश्रय देहादिरूप पक्षभूत अवयवी की असिद्धि के कारण कार्यत्व हेतु आश्रयासिद्ध है । [समवाय की असिद्धि से बुद्धिमत् शब्दार्थ की अनुपपत्ति ] तदुपरांत, ईश्वरसाधक अनुमान प्रयोग में 'बुद्धिमत्कारण' ऐसा जो साध्य में निर्देश किया है उसमें साध्यधर्म का भतुप् प्रत्ययार्थक जो बुद्धिमत् ऐसा विशेषण है वह नहीं घटता। कारण, ईश्वर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003801
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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