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प्रथमखण्ड-का० १ - ईश्वरकर्तृत्व उत्तरपक्षः
अस्पष्टतत्स्वरूपप्रतिभासं हि तदनुभूयते । नापि सालोकज्ञानेन स्पष्टतत्स्वरूपावभासिना, तत्र मन्दालोकज्ञानावभासितत्स्वरूपानवभासनात् । न हि परिस्फुटप्रतिभासवेलायामविशदरूपाकारोऽवयव्यर्थः प्रतिभाति, तत् कथमसाववयविनः स्वरूपम् ?
अथ 'मन्दालोकदृष्टमवयविनः स्वरूपं परिस्फुटमिदानीं पश्यामि' इति तयोरेकता । ननु a किमपरिस्फुटरूपतया परिस्फुटरूपमवगम्यते, b आहोस्वित् परिस्फुट तयाऽपरिस्फुटम् ? तत्र यद्याद्यः पक्ष:, तदाऽपरिस्फुटरूपसम्बन्धित्वमेवावयविनः प्राप्नोति परिस्पुटस्य रूपस्याऽस्कुटरूपताऽनुप्रवेशेन प्रतिभासनात् । b प्रथ द्वितीयः पक्षः, तथा सति स्पष्टस्वरूपसम्बन्धित्वमेव, अस्पष्टस्य विशदस्वरूपाऽनुप्रविष्टत्वेन प्रतिभासनात् । तन्न स्वरूपद्वयावगमोऽवयविनः । एकत्वप्रतिभासनं तु प्रतिभासरहितमभिमानमात्रं स्पष्टाऽस्पष्टरूपयोः, अन्यथा सालोकज्ञानवद् मन्दालोकज्ञानमपि परिस्फुटप्रतिभासं स्यात् ।
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उत्तरपक्षी:- यह प्रश्न गलत है, मन्द प्रकाश मे जो फीका अवभास होता है उसको अवयव - स्वरूप का प्रतिष्ठापक मानना अयुक्त है । कारण, अस्पष्टरूप से होने वाले अवयविप्रतिभास को स्पष्टज्ञान में भासित होने वाले अवयविस्वरूप के साथ विरोध होगा ।
पूर्वपक्ष:- अवयवी के दो स्वरूप हैं- स्पष्ट और अस्पष्ट, इसमें जो अस्पष्ट है वह मन्दप्रकाश से होने वाले ज्ञान का विषय है और स्पष्टरूप है वह पर्याप्त ( तीव्र ) प्रकाश में होने वाले ज्ञान की आधार भूमि है ।
उत्तरपक्षीः- अवयवी के ये दो स्वरूप किससे गृहीत होते हैं ? मन्दप्रकाशभाविज्ञान से तो नहीं हो सकते, क्योंकि उसमें तीव्रप्रकाशभाविज्ञान के विषयभूत स्पष्टरूप का अवभास नहीं हो सकता है, मन्दप्रकाशवाले ज्ञान में तो केवल अवयवी के अस्पष्टस्वरूप का अवभास ही अनुभूत होता है । अवयवी के स्पष्टस्वरूप के अवभासक तीव्रप्रकाशवाले ज्ञान से भी अवयवी के दो स्वरूप IT प्रतिभास अशक्य है, क्योंकि मन्दप्रकाश वाले ज्ञान में भासित होने वाला अवयवी का अस्पष्ट स्वरूप तीव्र प्रकाशभाविज्ञान में अवभासित नहीं होता है । जब अवयवी का परिस्फुट स्वरूप भासित होता है उस वक्त अस्पष्टाकार वाला अवयवोभूत पदार्थ भासित नहीं होता है । तो फिर इस अस्पष्टाकार को अवयवी का स्वरूप केसे माना जाय ?
[ स्पष्ट - अस्पष्ट स्वरुपद्वय में एकता असिद्ध ]
पूर्वपक्ष:- अवयवी के स्वरूपद्वय का ग्राहक ऐसा अनुभव होता है कि - " मन्द प्रकाश में देखे हुए अवयवी को अब मैं स्पष्टरूप से देख रहा हूँ" । इस अनुभव से उन दोनों का एकत्व सिद्ध होता है।
उत्तरपक्षी:- यहाँ दो विकल्प है, a क्या अस्पष्टस्वरूप से स्पष्टरूप का अनुभव होता है ? या b स्पष्टरूप से अस्पष्टस्वरूप का अनुभव होता है ? a यदि प्रथम पक्ष अंगीकार करें, तब तो 'जो जिसरूप से भासमान होता है वह तद्रूप होता है' इस नियमानुसार अस्पष्टरूप से भासमान स्पष्टरूपावयवी अस्पष्टरूपसम्बन्धि ही प्राप्त हुआ, क्योंकि परिस्फुट रूप यदि उसमें है तो भी वह अस्फुटरूप में अनुप्रविष्ट होकर ही भासित होता है, स्वतंत्र नहीं । b यदि दूसरे पक्ष का स्वीकार करें तो अवयवी स्फुटरूप का संबन्धी ही सिद्ध होगा, क्योंकि अस्फुटरूप तो स्पुटरूप में अनुप्रविष्ट
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