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प्रथमखण्ड - का० 1 - परलोकवाद:
अथ नाऽस्माभिः परलोकप्र साधकप्रमाणपर्यनुयोगोऽनुमानादिना स्वतन्त्रप्रसिद्धप्रामाण्येन पराभ्युपगमावगतप्रामाण्येन वा क्रियते । किं तहि ? यदि परलोकादिकोऽतीन्द्रियोऽर्थः परेणाभ्युपगम्यते तदा तत्प्रतिपादकं प्रमाणं वक्तव्यम् । प्रमाणनिबन्धना हि प्रमेयव्यवस्थितिः, तस्य च प्रमाणस्य तल्लक्षणाद्यसंभवेन तद्विषयस्याप्यभिमतस्याभावः इत्येवं विचारणालक्षण पर्यनुयोगः क्रियते । इति न स्वतन्त्रानुमानोपन्यास पक्षधर्म्यसिद्धयादिलक्षणदोषावकाशो बृहस्पतिमतानुसारिणाम् । नन्वेवमप्यनया भंग्या भवता परलोकाद्यतीन्द्रियार्थप्रसाधकप्रमाणपर्यनुयोग प्रसंगसाधनाख्यमनुमानं तद्विपर्ययस्वरूपं च स्ववाचैव प्रतिपादितं भवति । तथाहि-
'प्रमाणनिबन्धना प्रमेयव्यवस्थिति:' इत्येवं वदता प्रमेयव्यवस्था प्रमाणनिमित्तैव प्रतिपादिता भवति । एतच्च प्रसंगसाधनम् । तच्च 'व्याप्य व्यापकभावे सिद्धे यत्र व्याप्याभ्युपगमो व्यापकाभ्युपगमनान्तरीयकः प्रदर्श्यते' इत्येवं लक्षणम् । तेन प्रमेयव्यवस्था प्रमाणप्रवृत्त्या व्याप्ता प्रमाणतो भवता प्रदर्शनीया, अन्यथा प्रमाणप्रवृत्तिमन्तरेणापि प्रमेयव्यवस्था स्यात् । ततश्च कथं परलोकादिसाधकप्रमाणपर्यनुयोगेऽपि परलोकव्यवस्था न भवेत् ? व्याप्य व्यापकभावग्राहक प्रमाणाभ्युपगमे च कथं कार्यहेतो: स्वभावहेतोर्वा परलोकादिप्रसाधकत्वेन प्रवर्तमानस्य प्रतिक्षेपः, व्याप्तिसाधकप्रमाणसद्भावेऽनुमानप्रवृत्तेरनायास सिद्धत्वात् ?
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होता तब तो अज्ञानीओं ने गलती से जिस महान औषधादि को जहर समझ कर मारने के लिये किसी को पिला दिया हो, ऐसा महान् औषध भी मारने का काम कर देने में समर्थ हो जायेगा । [ पर्यनुयोग में प्रसंग और विपर्यय अनुमान समाविष्ट है ]
नास्तिक:- हम जो परलोक साधक प्रमाण के लिये पर्यनुयोग करते हैं वह हमारे मत में प्रसिद्ध प्रामाण्यवाले अनुमानादि से अथवा अन्यमत की मान्यता से जिसका प्रामाण्य ज्ञात किया है वैसे अनुमानादि से नहीं करते हैं ।
आस्तिकः- तो किससे करते हो ?
नास्तिक:- जब परवादी परलोकादि अतीन्द्रिय अर्थ को मानते हैं तब उसका समर्थक प्रमाण कहना - दिखाना चाहिये । क्योंकि किसी भी प्रमेय की व्यवस्था प्रमाणाधीन है । अतीन्द्रिय अर्थ में जिस प्रमाण को वे दिखाते हैं उस अनुमानादि में प्रमाण के लक्षणादि का असंभव दोष आता है, अत: उसके विषय रूप में मान्य परलोकादि जैसा कुछ नहीं है इस प्रकार की जो विचारणा करते हैं - यही पर्यनुयोग है | अतः बृहस्पतिमतानुयायियों के समक्ष अपने मत से अनुमान का प्रस्तुतीकरण, और उसमें पक्षधर्म की असिद्धि आदि रूप किसी भी दोष का अवकाश नहीं है ।
आस्तिक:- अरे ! इस ढंग से तो आप अपनी ही जबान से परलोकादि अतीन्द्रिय अर्थ के प्रसाधक प्रमाण का पर्यनुयोग करते हुए प्रसंगसाधननामक अनुमान और उसके विपर्यय रूप अनुमान का प्रतिपादन कर बैठे हैं। वह कैसे यह देखिये
[ नास्तिक कृत प्रसंगसाधन की समीक्षा ]
"प्रमेय की व्यवस्था प्रमाणाधीन है" यह जो कहा उससे यही प्रतिपादित हुआ कि प्रमेय की व्यवस्था प्रमाणनिमित्त ही है । इसीका नाम है प्रसंगसाधन [ जिस को अन्वयानुमान भी कह
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