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पृष्ठांक: विषयः
पृष्ठांकः विषयः ३२५ अहमाकारप्रतीति की आत्मविषयकता को |३४१ बौद्धदृष्टि से विज्ञान में अर्थग्राहकता अघटित
स्थापना |३४१ प्रासंगिकविज्ञानवादः समाप्तः ३२६ आत्मा और देह में ममत्व को समान प्रतीति |३४२ जड में जडता और संवेदन में स्वसंविदितत्व -नास्तिक
अनुभवसिद्ध है ३२७ प्रत्यक्ष केवल इन्द्रियजन्य ही नहीं होता जैन मत | ३४३ अस्वसंविदित प्रतीति से अर्थव्यवस्था अशक्य ३२८ आत्मा की स्वप्रकाशता में प्रदीपदृष्टान्त की | ३४३ प्रतीति गृहीत न होने पर व्यवस्था अनुपपन्न यथार्थता | ३४४ ज्ञानान्तरवेधतापक्ष में विषयान्तरसंचार का
असंभव ३२८ ज्ञानस्वप्रकाशवादारम्भः
३४५ प्रत्यक्षदत शब्दज्ञान में स्पष्ट प्रतिभास की ३२९ वैधHदृष्टान्त से ज्ञान में स्वप्रकाशत्वसिद्धि
भापत्ति ३३० स्वप्रकाशता में अष्टता और विरोध की
|:४७ वैशधप्रतिभासध्यवहार ज्ञान क्रमानुएलक्षणबात अनुचित
निमित्तक नहीं ३३१ विज्ञानवादीबौद्धमतारम्भः (प्रासंगिकः)
| ३४७ सर्वज्ञज्ञान में प्रमेयत्व हेतु व्यभिचारी होने ३३१ नीलादि स्वप्रकाश विज्ञानमय है-बौद्धमत
को प्रापत्ति ३३२ भेदपक्ष में नीलादि में ग्राह्यत्व की अनुपपत्ति
३४८ ज्ञानस्वप्रकाशवानः समाप्तः ३३३ ग्रहणक्रिया असिद्ध होने से नीलादि में कर्मता |३४८ ज्ञानाभिन्न आत्मा भी स्वसंवेदनसिद्ध है
अघटित |३४८ विना व्यापार ही ज्ञान-प्रात्मा स्वसंविदित हैं ३३३ ग्रहणक्रिया के स्वीकार में बाधक
३४९ प्रात्मा की अपरोक्षता-कथन का तात्पर्य ३३३ कर्मकर्तृ भावप्रतीति भ्रान्त है
३४६ नेत्रेन्द्रिय प्रत्यक्षापत्ति का प्रतिकार ३३४ कर्मकर्तृ भावप्रतीति भी अनुपपन्न ३५० 'कृशोऽहं' इत्यादि शरीरसमानाधिकरण ३३५ विज्ञान के पूर्वकाल में प्रर्थसत्ता की असिद्धि
प्रतीति भ्रान्त है ३३६ पूर्वकाल में अर्थसत्ता की अनुमान से सिद्धि ३५० देह में अहमाकारबुद्धि औपचारिक है
दुष्कर ३५१ सुखादिसमानाधिकरणक अहंप्रतीति उप३३७ पूर्वकाल में सत्ता न होने में अनुपलब्धि प्रमाण
चरित क्यों नहीं ? ३३७ नीलादि अन्यदर्शन साधारण नहीं है ।
| ३५१ अस्थिर देह स्थैर्यबुद्धि का विषय नहीं ३३८ अनुमान से भी अन्यदर्शनसाधारणता की | ३५२ बौद्धमत से प्रत्यभिज्ञा में आपादित दोषों सिद्धि दुष्कर
का प्रतिकार ३३८ प्रतिभासभेद से नीलाविभेदलिद्धि ३५३ दर्शन-स्पर्शनावभासभेद से प्रत्यभिज्ञा एकत्व ३३६ स्व-पर दृष्ट नीलादि में ऐक्य असिद्ध
पर आक्षेप ३३६ नीलाकार में ग्राह्यता की अनुपपत्ति ३५४ नीलप्रतिभास में भी समग्रविकल्पों की ३४० नित्य-अनित्य भेद से ग्राद्यत्व की उपपत्ति
समानता अशक्य ३५५ अवस्थाद्वय में अवस्थाता की अव्यापिता का ३४० उन्मुखत्वस्वरूप ग्राहकत्व की अनुपपत्ति
ग्रह कैसे ? ३४१ बोधजन्य ग्रहणक्रिया नील से भिन्न है या | ३५६ अनुसंधानप्रतीति से एकत्वसिद्धि में अन्योअभिन्न ?
न्याश्रय नहीं
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