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सम्मतिप्रकरण-नयकाण्ड १
अस्मिन् मते 'रजतम्' इति यत् फलसंवेदनं तव कि प्रत्यक्षफलस्य सत:, किं वा स्मृतेः ? यदि प्रत्यक्षफलस्य तदा यथा 'इदम्' इति प्रत्यक्षफलं प्रतिभाति तथा 'रजतम्' इत्यपि, ततश्च तुल्ये प्रतिभासे 'एक प्रत्यक्षम्-अपरं स्मरणं' इति किंकृतो विशेषः ? अथ उक्तम् ‘स्मरणस्यापि सतस्तद्रपानवगमात तेनाकारेणावगमः' । तत् किं रजतम्' इत्यत्राप्रतिपत्तिरेव तस्यां चाभ्युपगम्यमानायां कथं स्मतिप्रमोषः ? अन्यथा मूच्र्छाद्यवस्थायामपि स्यात् । अथ 'इदम्' इति तत्र प्रत्ययाभावान्नासौ । ननु 'इदम्' इत्यत्रापि वक्तव्यं-किमाभाति ? 'पुरोऽवस्थितं शक्तिशकलं' इति चेत् ? ननु कि प्रतिभासमानत्वेन तव प्रतिभाति ? उत संनिहितत्वेन ?
प्रतिभासमानत्वेन तथाभ्युपगमे न स्मतिप्रमोषः, शुक्तिकाशकले हि स्वगतधर्मविशिष्टे प्रतिभासमाने कुतो रजतस्मरणसंभावना ? न हि घटग्रहणे पटस्मरण संभवः । अथ शुक्तिका-रजतयोः साहयाद करता हूँ" इस प्रकार स्मृतिरूप का प्रवेदन किसी कारण से नहीं होता वहाँ स्मृति प्रमोष कहा जाता है, यानी वहाँ स्मृति अंश गुप्त रहता है, इस लिये वह अनुभव में स्फुरित नहीं होता।
[ 'रजतम्' यह संवेदन प्रत्यक्षरूप या स्मृतिरूप ?] [स्मृतिप्रमोषवादी के मत में अब स्वदर्शन व्याघातदोष होने से कैसे अपरोक्ष संवदेन नामक फल, व्यापार का अनुमापक नहीं हो सकता इसकी मीमांसा का प्रारम्भ करते पहले, स्मृतिप्रमोप होने पर 'इदं रजतम्' ज्ञान की आलोचना की जाती है-] 'इदं रजतम्' इस जान में 'रजनम् यह जो अपरोक्ष फल संवेदन है वह प्रत्यक्षात्मक फल का संवेदन है या स्मतिरूप का संवेदन है ? अर्थात 'रजतम्' इस संवेदन को प्रत्यक्षरूप मानते हैं या स्मति रूप ? यदि प्रत्यक्षफल का संवेदन माना जाय तो यह प्रश्न उटेगा कि-जैसे 'इदम्' इसरूप से प्रत्यक्षफल का प्रतिभास होता है उसी प्रकार 'रजतम्' यह भी प्रत्यक्षफल का प्रतिभास होने पर, वह कौनसा विशेष फर्क है जिससे प्रतिभास दोनों स्थल में समान होने पर भी एक 'इदं' प्रतिभास को प्रत्यक्ष माना जाता है और दूसरे ‘रजतम्' प्रतिभास को स्मरण माना जाय?
प्रमोषवादी:-हमने कहा तो है कि स्मरणात्मक वह संवेदन होते हुये भी स्मृतिस्वरूप का वेदन न होने से प्रत्यक्ष जैसे आकार से ही उसका बोध होता है।
उत्तरपक्षी:-यहाँ प्रश्न है कि क्या 'रजतम्' इस अंश में कोई प्रतिपत्ति यानी बोध ही नहीं है ? यदि 'नहीं है' ऐसा मानेंगे तो उस अंश में स्मृति का प्रमोष भी क्यों माना जाय ? कुछ बोध के न होने पर भी स्मृतिप्रमोष मानना हो तब तो बेहोश अवस्था में भी स्मृतिप्रमोष मानना होया, क्योंकि उस वक्त कुछ बोध नहीं होता।
प्रमोषवादी:-बेहोशी में 'इदं' इस प्रकार रजत के विषय में ज्ञान नहीं होता इस लिये स्मृति प्रमोष वहाँ नहीं मानते।
उत्तरपक्षी:-यहाँ भी प्रश्न है कि 'इदं' इस अंश में भी क्या भासता है ? यह बताईये । प्रमोषवादीः-सामने पड़ा हुआ सीप का टुकड़ा।
उत्तरपक्षीः-यहाँ भी दो प्रश्न है १-प्रतिभास होता है इसलिये सीप का वेदन होता है, या २-संनिहित होने से सीप का वेदन होता है ?
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