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________________ प्रथमखण्ड का० १- अभावप्रमाण ० अपि च तद् अभावाख्यं प्रमाणं निश्चितं सत् प्रकृताभावनिश्चयनिमित्तत्वेनाऽभ्युपगम्यते ? आहोस्विद् अनिश्चितं ? इति विकल्पद्वयम् । यद्यनिश्चितमिति पक्षः, स न युक्तः, स्वयमव्यवस्थितस्य खरविषाणादेरिव अन्यनिश्चायकत्वायोगात् । इन्द्रियादेस्त्व निश्चितस्यापि रूपादिज्ञानं प्रति कारणत्वाद् निश्चायकत्वं युक्तम् न पुनरभावप्रमाणस्य तस्यापरज्ञानं प्रति कारणत्वाऽसम्भवात् तदसम्भवश्च प्रमाणाभावात्मकत्वेनाऽवस्तुत्वात् । वस्तुत्वेऽपि तस्यैव प्रमेयाभावनिश्चयरूपत्वेनाऽभ्युपगमार्हत्वात् । १०७ · नापि द्दितीय: पक्ष:, यतस्तन्निश्चयोऽन्यस्मादभावाख्यात् प्रमाणादभ्युपगम्येत ? प्रमेयाभावाद् वा ? तत्र यदि प्रथमपक्षः स न युक्तः, अनवस्थाप्रसंगाद् । तथाहि अभावप्रमाणस्याभावप्रमाणान्निश्चि तस्याभावनिश्चायकत्वम्, तस्याप्यन्याभावप्रमाणाद् इत्यनवस्था । अथ प्रमेयाभावात् तनिश्चयः, सोऽपि न युक्तः इतरेतराश्रयदोषप्रसंगात् । तथाहि प्रमेयाभावनिश्चयात् प्रमाणाभावनिश्चयः, सोऽपि प्रमाणाभावनिश्चयाद् इति इतरेतराश्रयत्वम् । नापि स्वसंवेदनात् प्रमाणाभावनिश्चयः, तस्य भवताऽनभ्युपगमात् । तन्न अभावाख्यं प्रमाणं संभवति । सम्भवेऽपि न तत् प्रमाणचिन्तार्हमिति प्रतिपादितम् प्रतिपादयिष्यते च प्रमाणचिन्तावसरेऽत्रैव । तन्नाभावप्रमाणादपि विपक्षे साधनाभावनिश्चयः । अतो न प्रदर्शन निमित्तोऽपि प्रकृतध्यतिरेकनिश्चयः, तदभावाद न प्रकृतसाध्ये प्रकृतहेतोनियम लक्षण संबन्ध निश्चयः । उस रूप से उसका निषेध नहीं हो सकता क्योंकि उस रूप से निषेध करने के लिये तो उस रूप से उसका प्रतिभान जरूरी है । इसप्रकार यह फलित होता है कि प्रतियोगीस्वरूप 'अभाव यदि भिन्न हो तो भी उसका बोध होने पर प्रतियोगी की निवृति सिद्ध नहीं हो सकती । यदि वह अभाव प्रतियोगी स्वरूप से अभिन्न है तब तो अभाव का ग्रहण उस के प्रतियोगी के ही ग्रहणस्वरूप होने से उसका निषेध अशक्य है । Jain Educationa International [ स्वयं अनिश्चित अभावप्रमाण निरुपयोगी है ] अभावप्रमाण के अन्य भी दो विकल्प नहीं घट सकते । प्रथम विकल्प अभावनामक प्रमाण स्वयं निश्चित होकर प्रकृत अभावनिश्चय के निमित्तरूप में माना गया है ? या दूसरा विकल्प स्वयं अनिश्चित होकर ? स्वयं अनिश्चित होकर वह अभावनिश्चय का निमित्त बने यह प्रथम विकल्प ठीक नहीं है क्योंकि जो अपने आप में व्यवस्थित यानी निश्चित नहीं है जैसे कि गधे का सींग आदि, वह अन्य पदार्थ का निश्चायक नहीं हो सकता । यद्यपि इन्द्रियादि अतीन्द्रिय पदार्थ स्वयं अज्ञात होते हैं फिर भी वे यतः रूपादिज्ञान के कारणरूप में सिद्ध है अतः स्वयं अनिश्चित होने पर भी उस की अन्यनिश्चायकता हो सकती है, किन्तु अभावप्रमाण की तो नहीं ही हो सकती । कारण, वह किसी भी प्रकार के ज्ञान का कारण बनता हो यह संभवित नहीं है । सम्भवित इसलिये नहीं है कि वह स्वयं प्रत्यक्षादि पाँच प्रमाण के अभावरूप में माना गया है और अभाव तुच्छ होने से अवस्तुभूत है । अगर वह वस्तुभूत हो तो उसे ही प्रमेयाभाव के निश्चयरूप में मान लेना उचित है न कि प्रमाण पंचकनिवृत्तिरूप | [ अभावप्रमाण का निश्चय करने में अनवस्थादि ] अभावनामक प्रमाण स्वयं निश्चित होकर प्रकृत अभावनिश्चय का निमित्त बनता है- यह द्वितीय पक्ष भी उचित नहीं है । क्योंकि स्वयं निश्चित रहने वाला वह अभावप्रमाण अन्य कोई अभावनामक प्रमाण से निश्चित होता है या प्रमेयाभाव से ? यदि प्रथम पक्ष लिया जाय तो अनवस्था For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003801
Book TitleSanmati Tark Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaydevsuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year2010
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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