________________
[४७०] गुरुमिह सययं पडियरिय मुनी, जिनमयनिउणे अभिगमकुसले । धुणिय रयमलं पुरेकडं, भासुरमउलं गई गय त्तिबेमि || • नवमे अज्झयणे तइओ उद्देसो समत्तं .
० चउत्थो-उद्देसो.
[४७१] सुयं मे आउसं तेणं भगवया एवमक्खायं- इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं चत्तारि विनयसमाहिट्ठाणा पन्नत्ता । कयरे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं चत्तारि विनयसमाहिट्ठाणा पन्नत्ता ? इमे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं चत्तारि विनयसमाहिट्ठाणा पन्नत्ता तं जहा- विनयसमाही सुयसमाही, तवसमाही, आयारसमाही । अज्झयणं-९, उद्देसो-४
[४७२] विनए सुए अ तवे, आयारे निच्च पंडिआ ।
अभिरामयंति अप्पाणं, जे भवंति जिइंदिआ ।।
[४७३] चउव्विहा खलु विनयसमाही भवही, तं जहा- अनुसासिज्जंतो सुस्सूसइ, सम्म संपडिवज्जइ, वेयमाराहयइ, न य भवइ अत्तसंपग्गहिए चउत्थं पयं भवइ ।
[४७४] भवइ इत्थ सिलोगो | [४७५] पेहेइ हियाणुसासनं सुस्सूसइ तं च पुणो अहिट्ठिए ।
न य माणमएण मज्जई विनयसमाहिआययहिए ।।
[४७६] चउव्विहा खलु सुयसमाही भवइ तं जहा- सुयं मे भविस्सइ त्ति अज्झाइयव्वं भवइ, एगग्गचित्तो भविस्सामि त्ति अज्जाइयव्वं भवइ, अप्पाणं ठावइस्सामि त्ति अज्झाइयव्वं भवइ, ठिओ परं ठावइस्सामि त्ति अज्झाइयव्वं भवइ चउत्थं पयं भवइ ।
[४७७] भवइ अ इत्थ सिलोगो । [४७८] नाणमेगग्गचित्तो य, ठिओ य ठावइ परं ।
सुयाणि य अहिज्जित्ता, रओ सुयसमाहिए ||
[४७९] चउव्विहा खल तवसमाही भवइ, तं जहा- नो इहलोगट्टयाए तवमहिद्वेज्जा, नो पहरलोगट्ठयाए तव महिढेज्जा, नो कित्तिवण्णसद्दसिलोगट्ठयाए तवमहिहिज्जा, नन्नत्थ निज्जरद्वयाए तवमहिद्विज्जा चउत्थं पयं भवइ ।
[४८०] भवइ अ इत्थ सिलोगो । [४८१] विविहगुणतवोरए य निच्चं भवइ निरासए निज्जरहिए |
तवसा धुणइ पुराणपावगं, जुत्तोसया तवसमाहिए ।।
[४८१] चउव्विहा खलु आयारसमाही भवइ, तं जहा- नो इहलोगट्ठयाए आयारमहिहिज्जा, नो परलोगट्ठयाए आयारमहिद्विज्जा, नो कित्तिवन्नसद्दसिलोगट्ठयाए आयारमहिद्विज्जा, नन्नत्थ आरहंतेहिं हेऊहिं आयारमहिद्विज्जा चउत्थं पयं भवइ ।
[भवइ य इत्थ सिलोगो] [४८२] जिनवयणरए अतिंतिणे, पडिपुन्नाययमाययहिए | आयारसमाहिसंवुडे, भवइ य दंते भावसंधए ।।
दीपरत्नसागर संशोधितः]
[33]
[४२-दसवेआलियं