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________________ [१०३] इह खलु निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा पाडिहारिए वा सागारियसंतिए वा सेज्जासंथारए विप्पणसेज्जा से य अनुगवेसियव्वे सिया, से य अनुगवेस्समाणे लभेज्जा तस्सेव पडिदायव्वे सिया, से य अनुगवेस्समाणे नो लभेज्जा एवं से कप्पड़ दोच्चं पि ओग्गहं अणुण्णवित्ता परिहारं परिहरित्तए । [१०४] जद्दिवसं च णं समणा निग्गंथा सेज्जा-संथारयं विप्पजहंति तद्दिवसं च णं अवरे समणा निग्गंथा हव्वमागच्छेज्जा सच्चेव ओग्गहस्स पुव्वाणुण्णवणा चिट्ठइ अहालंदमवि ओग्गहे | [१०५] अत्थि या इत्थ केइ उवस्सयपरियावन्नए अचित्ते परिहरणारिहे स च्चेव ओग्गहस्स पुव्वाणुण्णवणा चिट्ठइ अहालंमदवि ओग्गहे । उद्देसो-३ [१०६] से वत्थूसु अव्वावडेसु अव्वोगडेसु अपरपरिग्गहिएसु [अमरपरिग्गहिएसु] स च्चेव ओग्गहस्स पुव्वाणुण्णवणा चिट्ठइ अहालंदमवि ओग्गहे । [१०] से वत्थूसु वावडेसु वोगडेसु परपरिग्गहिएसु भिक्खुभावस्स अट्ठाए दोच्चंपि ओग्गहे अणुण्णवेयव्वे सिया अहालंदमवि ओग्गहे । ___ [१०८] से अनुकुड्डेसु वा अनुभित्तीसु वा अनुचरियासु वा अनुफरिहासु वा अनुपंथेसु वा अनुमेरासु वा सच्चेव ओग्गहस्स पुव्वाणुण्णवणा चिट्ठइ अहालंदमवि ओग्गहे | __[१०९] से गामंसि वा जाव रायहाणीए वा बहिया सेणं सन्निविट्ठ पेहाए कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा तद्दिवसं भिक्खयरियाए गंतूणं पडिनियत्तए, नो से कप्पड़ तं रयणिं तत्थेव उवाइणावेत्तए जे खलु निग्गंथे वा निग्गंथी वा तं रयणिं तत्थेव उवाइणावेइ उवाइणावेंतं वा साइज्जइ, से दुहओ वि अइक्कममाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अनुग्घाइयं । [११०] से गामंसि वा जाव सन्निवेसंसि वा कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा सव्वओ संमंता सक्कोसं जोयणं ओग्गहं ओगिण्हित्ताणं चिट्ठित्तए परिहरित्तए त्ति बेमि | • त्तइओ उद्देसो समत्तो . ० चउत्थो-उद्देसो . [१११] तओ अनुग्घाइया पन्नत्ता तं जहा-हत्थकम्मं करेमाणे, मेहुणं पडिसेवमाणे, राईभोयणं भंजमाणे । [११२] तओ पारंचिया पन्नत्ता तं जहा-दुहेपारंचिए, पमत्तेपारंचिए, अन्नमन्नं करेमाणे पारंचिए । [११३] तओ अणवठ्ठप्पा पन्नत्ता तं जहा साहम्मियाणं तेणियं करेमाणे, अन्न धम्मियाणं तेणियं करेमाणे, हत्थदालं दलमाणे | [११४] तओ नो कप्पंति पव्वावेत्तए तं जहा-पंडए, कीवे, वाइए | [११५] [तओ नो कप्पंति] मुंडावेत्तए सिक्खावेत्तए उवट्ठावेत्तए संभंजित्तए संवासित्तए त्तं जहा- पंडए, वाइए, कीवे । [११६] तओ नो कप्पंति वाइत्तए तं जहा अविनीए विग्गईपडिबद्धे अविओसवियपाहुडे तओ कप्पंति वाइत्तए तं जहा-विनीए नो विगईपडिबद्धे विओसवियपाहुडे | [दीपरत्नसागर संशोधितः] 191 [३५-बुहत्कप्पो] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003769
Book TitleAgam 35 Bruhatkappo Bieyam Cheyasuttam Mulam PDF File
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2012
Total Pages19
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 35, & agam_bruhatkalpa
File Size2 MB
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