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________________ 0 एक्कचत्तालीसइमो समवाओ समत्तो 0 0 मुनि दीपरत्नसागरेण संशोधितः सम्पादित्तश्च एगचत्तालीसइमो समवाओ समत्तो 0 0 बायालीसइमो-समवाओ 0 [११८] समणे भगवं महावीरे बायालीसं वासाइं साहियाई सामप्परियागं पाउणित्त सिद्धे जाव सव्वुदक्खप्पहीणे, जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स पुरथिमिल्लाओ चरिमंताओ गोथूभस्स णं आवासपव्वयस्स पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते एस णं वायालीसं जोयणसहस्साई अबाहाते अंतरे पन्नत्ते एवं चउद्दिसि पि दओभासे संखे दयसीमे य, कालोए णं समुद्दे वायालीसं चंदा जोइंस् वा जोइंति वा जोइस्संति वा वायालीसं सूरिया पभासिंस् वा पभासिति वा पभासिस्संति वा, संमच्छिमभयपरिसप्पाणं उक्कोसेणं वायालीसं वाससहस्साइं ठिई प० । नामे णं कम्मे बायालीसविहे पन्नत्ते तं जहा- गइनामे जातिनामे सरीरनामे सरीरंगोवंगनामे सरीरबंधणनामे सरीरसंघायणनामे संघयणनामे संठाणनामे वण्णनामे गंधनामे रसनामे फासनामे अगरुयलयनामे उवघायनामे पराघायनामे आणुपुव्वीनामे उस्सासनामे आयवनामे उज्जोयनामे विहग- गइनामेतसनामे थावरनामे सुहमनामे वायरनामे पज्जत्तनामे अपज्जत्तनामे साधारणसरीरनामे पत्तेयसरीरनामे थिरनामे अथिरनामे सुभनामे असुभनामे सुभगनामे दूभगनामे सुस्सरनामे दुस्सरनामे आएज्जनामे अणाएज्जनामे जसोकित्तिनामे अजसोकित्तिनामे निम्माणनामे तित्थकरनामे, । लवणे णं समद्दे वायालीसं नागसाहस्सीओ अभिंतरियं वेलं धारेंति, महालियाए णं विमाणपविभत्तीए बितिए वग्गे वायालीसं उद्देसणकाला पन्नत्ता । एगमेगाए ओसप्पिणीए पंचमछट्ठीओ समाओ वायालीसं वाससहस्साई कालेणं प0, एगमेगाए उस्सप्पिणीए पढमबीयाओ समाओ वायालीसं वाससहस्साइं कालेणं पन्नत्ताओ । बायालीसइमो समवाओ समत्तो । 0 मुनि दीपरत्नसागरेण संशोधितः सम्पादित्तश्च बायालीसइमो समवाओ समत्तो 0 0 तेयालीसइमो-समवाओ 0 [११९] तेयालीसं कम्मविवागज्झयणा पन्नत्ता, पढमचउत्थपंचमासु-तीसु पुढवीसु तेयालीसं निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता, जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स पुरत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ गोथूमस्स णं आवास पव्वयस्स पत्थिमिल्ले चरितमंते एस णं तेयालीसं जोयणसहस्सई अवाहाए अंतरे प0 एवं चउद्दिसिंपि । दओभासे संखे दयसीमे महालियए णं विमाणपविभत्तीए ततिये वग्गे तेयालीसं उद्देसणकाला पन्नत्ता | तेयालीसइमो समवाओ समत्तो 0 0 मुनि दीपरत्नसागरेण संशोधितः सम्पादित्तश्च तेयालीसइमो समवाओ समत्तो 0 समवाओ-४४ 0 चोयालीसइमो-समवाओ 0 [१२0] चोयालीसं अज्झयणा इसिभासिया दियलोगच्याभासिया पन्नत्ता | विमलस्स णं अरहतो चोयालीसं पुरिसजुगाई अणुपहिँ सिद्धाइं [बुद्धाई मुत्ताई अंतगडाइं परिनिव्वुयाइं सव्वदुक्ख] प्पहीणाई, धरणस्स णं नागिंदस्स नागरण्णो चोयालीसं [दीपरत्नसागर संशोधितः] [37] [४-समवाओ]
SR No.003707
Book TitleAgam 04 Samvao Chauttham Angsuttam Mulam PDF File
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2012
Total Pages81
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 04, & agam_samvayang
File Size2 MB
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