SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ णं सुदंसणा अट्ठ जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता, कूडसामली णं गरुलावासे अट्ठ जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ते, जंबुदीवस्स णं जगई अट्ठ जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता | अट्ठसामइए केवलिएसमग्घाए पन्नत्ते तं जहा- पढमे समए दंडं करेइ बीए समए कवाडं करेइ तइए समए मंथं करेइ चउत्थे समए मंथंतराइं पूरेइ पंचमे समए मंथंतराइं पडिसाहरइ छटे समए मंथं पडिसाहरइ सत्तमे समए कवाडं पडिसाहरइ अट्ठमे समए दंडं पडिसाहरइ तत्तो पच्छा सरीरत्थे भवइ पासस्स णं अरहओ परिसादाणिअस्स अट्ठ गणा अट्ठ गणहरा होत्था तं जहा | समवाओ-८ [९] सुंभे य सुंभघोसे य वसिट्टे बंभयारि य । सोमे सिरिधरे चेव वीरभद्दे जसे इ य ।। [१०] अट्ठ नक्खत्ता चंदेणं सद्धिं पमई जोगं जोएंति तं जहा- कत्तिया रोहिणी पुणव्वसू महा चित्ता विसाहा अणराहा जेट्ठा । इमीसे णं रयणप्पहाणए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं अट्ठ पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता, चउत्थीए पढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं अट्ठ सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता । असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं अटठ पलिओवमाई ठिई पन्नत्ता । सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं अट्ठ पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता बंभलोए कप्पे अत्थेगइयाणं देवाणं अट्ठ सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता जे देवा अच्चिं अच्चिमालिं वइरोयणं पभंकरं चंदाभं सूराभं सुपइट्ठाभं अग्गिच्चाभं रिट्ठाभं अरुणामं अरुणत्तरवडेंसगं विभाणं देवत्ताए उववण्णा तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं अट्ठ सागरोवमाई ठिई पन्नत्ता ते णं देवा अट्ठण्हं अद्धमासाणं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा तेसि णं देवाणं अट्ठहिं वाससहस्सेहिं आहारट्टे समप्प-ज्जइ संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे अट्ठहिं भगवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति [बुज्झिस्संति मुच्चि-स्संति परिनिव्वाहस्संति सव्वदुक्खाण] मंतं करिस्संति । अहमो समवाओ समत्तो 0 मुनि दीपरत्नसागरेण संशोधितः सम्पादित्तश्च अट्ठमो समवाओ समत्तो 0 0 नवमो-समवाओ 0 [११] नव बंभचेरगुत्तीओ तं जहा- नो इत्थी-पसु-पंडग-संसत्ताणि सिज्जासणाणि सेवित्ता भवइ, नो इत्थीणं कहं कहित्ता भवइ, नो इत्थीणं ठाणाई सेवित्ता भवइ, नो इत्थीणं इंदियाइं मनोहराई मणोरमाइं आलोइत्ता निज्झाइत्ता भवइ, नो पणीयरसभोई भवइ, नो पाणभोयणस्स अतिमायं आहारइत्ता भवइ, नो इत्थीणं पुव्वरयाइं पुव्वकीलियाई सुमरइत्ता भवइ, नो सद्दाणुवाई नो रूवाणुवाई नो गंधाणुवाई नो रसाणुवाई नो फासाणुवाई नो सिलोगाणुवाई, नो सायासोक्खपडिबद्धे यावि भवइ । नव बंभचेरअगुत्तीओ पन्नत्ताओ तं जहा- इत्थी-पस्-पंडग-संसत्ताणि सिज्जासणाणि सेवित्ता भवइ जाव सायोसोक्खपडिबद्धे यावि भवइ, नव बंभचेरा पन्नत्ता तं जहा- । [१२] सत्थपरिण्णा लोगविजओ सीओसणिज्जं सम्मत्तं । आवंती धुतं विमोहायणं उवहाणस्यं महपरिण्णा ।। [दीपरत्नसागर संशोधितः] [9] [४-समवाओ]
SR No.003707
Book TitleAgam 04 Samvao Chauttham Angsuttam Mulam PDF File
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2012
Total Pages81
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 04, & agam_samvayang
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy