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सर्वज्ञ कथित: परम सामायिक धर्म
(२२-२३) संस्थानद्वार, संघयणद्वार - छत्र संस्थान और संघयण में चारों सामायिक प्राप्त हो सकती हैं और प्राप्त किये हुए जीव होते हैं । (२४) अवगाहना द्वार - अवगाहना अर्थात् देह की ऊँचाई का द्वार ( नाप ) ।
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मनुष्य की उत्कृष्ट अवगाहना तीन कोस और जघन्य से उंगली का असंख्यातवाँ भाग है । इस उत्कृष्ट और जघन्य के अतिरिक्त समस्त मध्यम अवगाहना में आने वाले समस्त मनुष्य सामायिक प्राप्त करते हैं और प्राप्त किये हुए तो होते ही हैं ।
. जघन्य अवगाहना वाले गर्भज मनुष्य सम्यक्त्व और श्रुत सामायिक के पूर्वप्रतिपन्न होते हैं, प्रतिपद्यमान नहीं । उत्कृष्ट अवगाहना वालों को ये दोनों सामायिक दोनों तरह से होती हैं ।
जघन्य मान वाले देव, नारक भी इन दोनों सामायिकों के पूर्व प्रतिपन्न होते हैं, प्रतिपद्यमान नहीं । मध्यम एवं उत्कृष्ट देह-मान वाले इन दोनों आद्य दो सामायिकों के प्रतिपद्यमान एवं पूर्व प्रतिपन्न होते हैं ।
तिर्यंच पंचेन्द्रिय जघन्य अवगाहना वाले इन दोनों सामायिकों के पूर्वप्रतिपन्न होते हैं, प्रतिपद्यमान नहीं । उत्कृष्ट अवगाहना वाले दोनों तरह से दोनों सामायिक प्राप्त करते हैं। मध्यम देह-मान वाले अथवा सर्वविरति के अतिरिक्त तीन सामायिकों के प्रतिपद्यमान संभव होते हैं । पूर्वप्रतिपन्न तीनों के होते ही हैं ।
(२५) लेश्याद्वार - सम्यक्त्व और श्रुत सामायिक समस्त लेश्याओं में प्राप्त होती है । देशविरति और सर्वविरति सामायिक तेजस, पद्म और शुक्लरूप शुद्ध लेश्या में प्राप्त होती हैं, जबकि पूर्वप्रतिपन्न तो छः में से किसी भी लेश्या में चारित्री एवं सम्यग्दृष्टि को होती है ।
(२६) परिणामद्वार - आत्मा के परिणाम अध्यवसाय, तीन प्रकार के होते हैं । (१) वर्धमान - वृद्धि होते, (२) हीयमान - घटते, (३) अवस्थित - स्थिर ।
शुभ शुभतरपन से वृद्धि होते परिणाम में जीव चारों सामायिकों में से किसी भी सामायिक को प्राप्त करता है । इसी प्रकार अन्तरकरणादि अवस्थित शुभ परिणाम में समझें ।
हीयमान - हानि होते शुभ परिणाम में कोई भी सामायिक प्राप्त नहीं होती ।
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