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२६ सर्वज्ञ कथित : परम सामायिक धर्म 'सव्वाओ लद्धिओ सागारोवओगम्मि'-'समस्त लब्धि साकार उपयोग में उत्पन्न होती हैं-यह बताती है। दूसरी एक आगम-पंक्ति का कथन है कि–'उवओगदुगम्मि चउरोपडिवज्जे-दोनों उपयोगों में चारों सामायिक प्राप्त होती हैं।
स्थूल दृष्टि से परस्पर विरोधी प्रतीत होती इन दोनों पंक्तियों का सापेक्षता से इस प्रकार समन्वय किया जा सकता है। जो जीव एक बार सम्यक्त्व प्राप्त करने के पश्चात् मिथ्यात्व में जाते हैं, तब उनमें से अनेक जीवों को शुभ कर्मोदय से प्रतिक्षण प्रवर्धमान विशुद्ध परिणाम उत्पन्न होने पर जो सम्यक्त्व, चारित्र आदि लब्धि अथवा अवधिज्ञान आदि लब्धि प्राप्त होती हैं वे साकार उपयोग की अवस्था में प्राप्त हुई हैं यह समझें और जो जीव सर्वप्रथम सम्यक्त्व की प्राप्ति के समय अन्तरकरण में प्रविष्ट होकर स्थिर अध्यवसायी बनते हैं, उस समय उन्हें जो सम्यक्त्व आदि लब्धि प्राप्त होती हैं, वे निराकार उपयोग में प्राप्त हुई हैं यह समझें।
अन्नरकरण में स्थिर जीव सम्यक्त्व एवं श्रुत सामायिक एक साथ प्राप्त करते हैं। उनमें भी अनेक अत्यन्त विशुद्ध परिणाम वाले जीव देशविरति भी प्राप्त करते हैं और कोई अत्यन्त विशुद्ध परिणामी आत्मा सर्न. विरति प्राप्त करती है। इस प्रकार उपशम सम्यक्त्व की प्राप्ति के समय स्थिर परिणामी निर्विकल्प उपयोग में प्रवर्तित आत्मा को चारों सामायिक प्राप्त हो सकती हैं, इसमें तनिक भी विरोध नहीं आता।
उपशम सम्यक्त्व प्राप्ति की विशेष प्रक्रिया कर्म-ग्रन्थ आदि से समझ लें। उसका संक्षिप्त सार यह है कि वन में लगी भयंकर दावाग्नि भी ऊसर भूमि के समीप आकर स्वत: ही शान्त हो जाती है। इस प्रकार अन्तरकरण की मिथ्यात्व अग्नि शान्त होने पर जीव 'उपशम सम्यक्त्व' प्राप्त करता है।
प्रश्न-अन्तरकरण में जीव के परिणाम स्थिर क्यों हो जाते हैं ?
उत्तर-अन्तरकरण में मिथ्यात्व का उदय नहीं होने से अध्यवसाय को हानि नहीं होती और सत्तागत मिथ्यात्व शान्त हो जाने के कारण परिणामों में वृद्धि नहीं होती । जिस प्रकार ईंधन के अभाव में दावानल में वृद्धि नहीं होती, उसी प्रकार वेदन-योग्य मिथ्यात्व पुद्गलों के अभाव में अन्तरकरण वाली अवस्था में जीव के विशुद्ध परिणाम स्थिर रहते हैं, उनमें वेग उत्पन्न नहीं होता।
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