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१२२ सर्वज्ञ कथित: परम सामायिक धर्म
आत्मा ही अहिंसा है । प्रमत्त को हिंसक और अप्रमत्त को अहिंसक कहा जाता है ।
प्रश्न - वर्तमान एवं भविष्यत्काल के पाप का प्रत्याख्यान ( संवरण ) तो हो सकता है, क्योंकि उस पाप का सेवन नहीं हुआ, परन्तु भूतकाल में जो पास किये जा चुके हैं, उनका संवरण किस प्रकार हो सकता है ?
समाधान - भूतकाल में किये गये पाप की निन्दा होती है अथवा भूतकाल में मुझसे जो पाप हो गये वह ठीक नहीं हुआ ऐसा पश्चात्ताप अर्थात् पाप की अनुमोदना का भी त्याग होता है, इस प्रकार भूतकालीन पाप की अविरति का परित्याग होता है, अतः भूतकाल का पच्चक्खाण युक्ति-संगत है ।
प्रश्न – सूत्र में " करतपि अन्नं" किस लिये है ?
समाधान - (१) दोनों शब्दों के मध्य का " अपि " शब्द सम्भावना के अर्थ में है । वह यह सूचित करता है कि प्रमाद आदि के पाप में प्रवृत्ति करती मेरी आत्मा की "यह तूने अच्छा किया है" ऐसी अनुमोदना नहीं करके "मिच्छामि दुष्कृतम् " देकर निवृत्त होता हूँ, तथा अन्य कोई व्यक्ति पाप करता हो, कराता हो, अथवा उसकी अनुमोदना करता हो, उसकी भी मैं प्रशंसा नहीं करूँगा ।
जो स्वयं पाप कर्म करते हों उनसे पाप कर्म नहीं कराऊँगा । जो दूसरों से पाप प्रवृत्ति कराते हों उनसे भी नहीं कराऊँगा । तथा जो पाप प्रवृत्ति की अनुमोदना करते हों उनकी भी मैं अनुमोदना नहीं करूँगा । सम्भवतः इन सब प्रकारों का समावेश " अपि " शब्द से होता है ।
( २ ) अथवा " अपि " शब्द वर्तमानकाल के साथ भूतकाल और भविष्यतकाल की प्रतिज्ञा का भी सूचक है । भूतकाल में यदि मैंने स्वयं पाप किया हो, दूसरों से कराया हो, अथवा किसी के पाप-कार्य की प्रशंसा की हो उन सबकी मैं अनुमोदना नहीं करूँगा, तथा भविष्य में जो कोई पाप - प्रवृत्ति करेगा, दूसरों से करायेगा अथवा पाप की प्रशंसा करेगा, उसकी भी मैं अनुमोदना नहीं करूँगा ।
(३) अन्य प्रकार से भी इस प्रतिज्ञा में तीनों कालों का समावेश है । " सर्व " शब्द से तीनों कालों का संग्रह किया है, और " अपि " शब्द से तीन काल से सम्बन्धित कर्तृ -क्रिया का कथन है । जिस प्रकार वर्तमान में मैं पाप-कार्य नहीं करूँगा, नहीं कराऊँगा अथवा करने वाले को अनुमोदना
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