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________________ ( ११ ) अभय किये बिना अभय की प्राप्ति नहीं हो सकती। भय से चित्त की भावनाएँ चंचल होती हैं । समस्त जीवों को अभय करना ही सम्पूर्ण अभय अवस्था प्राप्ति का अनन्य उपाय है। ___ मैत्री भाव से द्वेष की क्रू र भावना नष्ट हो जाती है, करुणा से हृदय कोमल बन जाता है, मृद्रता अभिमान की कठोर वृत्तियों को तोड़ डालती है, क्षमा से क्रोधाग्नि शान्त हो जाती है और भक्ति से पूज्यों के समर्पण भाव प्रकट होता है । ये समस्त गुण तथा मित्रा आदि दृष्टियों के साधकों में प्रकट होने वाले गुण इस “साम" सामायिक के द्योतक हैं; तथा अध्यात्म एवं भावना योग और प्रीति एवं भक्ति अनुष्ठान भी इस मधुर परिणाम रूप सामायिक को पुष्ट करता है। योग के अंग रूम यम, नियम, आसन, प्राणायाम एवं धारणा की प्रकृष्ट साधना भी इस भूमिका में अवश्य दृष्टिगोचर होती है। दया-रसमय जिन शासन की आगम-सम्पत्ति भी अद्वितीय है जिसमें योग, अध्यात्म एवं धर्म के गम्भीर रहस्यों को अत्यन्त ही सूक्ष्म, स्पष्ट एवं व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत किये हैं। श्री आचारांग सूत्र के प्रथम अध्ययन में भी कहा है कि-"समस्त जीवों को आत्मवत् मानकर उनकी रक्षा करनी चाहिये, किसी को दुःख हो ऐसी कोई प्रवृत्ति नहीं करनी चाहिये, क्योंकि समस्त जीवों की रक्षा से ही संयम की सुरक्षा होती है और संयम की सुरक्षा से ही आत्मा की रक्षा होती है । अतः समस्त जीवों के प्रति मैत्री भाव रखकर उनकी हिंसा का त्याग करते हुए उन्हें पूर्णतः अभय करना चाहिए जिससे आपको भी अभय की प्राप्ति होती है।" साम सामायिक का लक्षण सर्व जीवमैत्रिभावलक्षणस्य (समस्य) आयः समायः तदेव सामायिक, सावद्य योगपरिहारनिरवद्ययोगानुष्ठानरूपो जीवपरिणामः ॥ साम अर्थात् समस्त जीवों के प्रति मैत्री भावरूप समता, आय अर्थात् उसका लाभ, वही “सामायिक" है और वह सावद्ययोग-पाप व्यापार के त्याग स्वरूप और निरवद्ययोग-धर्म व्यापार के सेवन के रूप में आत्मा का परिणाम है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003696
Book TitleSarvagna Kathit Param Samayik Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalapurnsuri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1986
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size8 MB
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