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________________ ८२ सर्वज्ञ कथित : परम सामायिक धर्म इस प्रकार के गुरुकुल-वास का कोई फल प्राप्त नहीं होता। गुरु की आज्ञा का पालन किये बिना "भावयतिपन" नहीं आता। गुरु की आज्ञा की आराधना "भावयति" का लक्षण है । कहा भी है कि प्रत्येक प्रवृत्ति में गुरु के समीप रहना अर्थात् गुरु की निश्रा में प्रत्येक प्रवृत्ति करने को ही "अन्तेवासीपन" कहते हैं। गुरु की दृष्टि', आज्ञानुसार व्यवहार करना । गुरु द्वारा निर्दिष्ट मुक्ति-विरति-अनाशंस भाव को जीवन में ज्वलंत करने का सतत प्रयास करना । प्रत्येक कार्य में गुरु को ही अग्रस्थान देना । कोई भी कार्य स्वेच्छा से न करके गुरु की अनुमति से करना। गुरु के आसन के समीप अपना आसन रखना, गुरु के समीप रहना। उचित विनय-गुरु की निश्रा में रहने वाला, गुरु की आज्ञा का पूर्णतः पालन करने वाला मुनि परम विनयी होता है, स्वयं के गरु तथा स्वयं से अधिक पर्याय वाले अथवा ज्ञान आदि गुणों में अधिक मुनिवरों के साथ भी यथोचित विनय रखने में प्रवीण होकर सबके साथ औचित्य रख कर गुरु की सेवा में तत्पर रहता है। गुरुदेव की आदरपूर्वक हार्दिक सेवा-शुश्रुषा करने से उनके आशय के अनुसार कार्य करने की कुशलता प्राप्त होती है। किसी समय गुरु ने आज्ञा प्रदान न की हो तो भी विनीत शिष्य उनके आशय के अनुरूप ही कार्य करता है। इस प्रकार "गुरु-विनय” से “सामायिक" की प्राप्ति होती है, अन्यथा नहीं; यह बताने के लिए ही यहाँ गुरु-वन्दन एवं सेवा आदि के लाभ बताकर उनका विशेष महत्व स्पष्ट किया गया है। इस प्रकार के वन्दन एव नमस्कार के योग्य पांचों परमेष्ठी हैं। उन सबका समावेश "भन्ते" में हो चुका है। __ 'नमस्कार नियुक्ति" में कहा है कि "नमस्कार करने योग्य यदि विश्व में कोई हो तो वे ज्ञान आदि गुणों के भण्डार श्री अरिहंत आदि -धर्मसंग्रह १ तद्दिट्ठीए, तम्मोत्तिए तप्पुरक्कारे तस्सण्णी तन्निवेसणे ॥ २ ते अरिहंता य सिद्धायरिओवज्झाय साहवो नेया । जे गुणमय भावाओ गुणाव्व पुज्जा गुणत्थीणं ॥२९४२॥ -विशेषा० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003696
Book TitleSarvagna Kathit Param Samayik Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalapurnsuri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1986
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size8 MB
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