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________________ A rrrrrr परीषह-जयीxxxvratr क्रोध और भी बढ़ गया । "देखो ,सभी विद्यार्थियों के सिरहाने कांसे के बर्तन इस तरह से रखना कि किसी को पता न चले । और जब सभी विद्यार्थी पूर्णरूप से निद्राधीन हो जाएँ तब एकाएक जोर से इन बर्तनों को पछाड़ना ।" आचार्य ने अपने एक गुप्तचर सो सारी बात समझाते हुए नई चाल का सहारा लिया । आचार्य यह मानते थे कि रात्रि को जब अनायास भयानक शब्द होगा । उस समय घबराहट में निश्चित रूप से हर विद्यार्थी अपने अपने इष्टदेव का स्मरण करेगा । ऐसा ही षड्यन्त्र किया गया । एकाएक रात को जब सभी गाढ़ निद्रा में सो रहे थे ,एक भयानक शब्द हुआ । एकाएक इस विस्फोटक गूंज को सुनकर, घबड़ाकर ,हड़बड़ाहट में सभी ने अपने इष्ट देव का स्मरण किया । आचार्य का जासूस विद्यार्थियों के मुंह से निकल रहे स्मरण को ध्यान से सुन रहा था । उसने देखा कि सभी विद्यार्थियों के मुख से "बुद्धम् शरणम् गच्छामि " की ध्वनि निकल रही है और इन दो विद्यार्थियों के मुख से "णमो अरिहन्ताणम्" की ध्वनि निकल रही है । अकलंक और निकलंक इस हड़बड़ाहट में यह भूल गये कि वे वहाँ छदम् वेशी बौद्ध बनकर रह रहे हैं । स्वाभाविक भी था अनायास आए हुए संकट में व्यक्ति को अपना इष्टदेव ही याद आता है । दोनों भाईयों की यह भूल उनके कष्ट का कारण बनी । "गुरूजी ये दोनों भाई जैन धर्म के नमस्कार मन्त्र का उच्चारण कर रहे थे।" दोनों भाईयों को पकड़कर आचार्य के सामने प्रस्तुत करते हुए जासूस ने कहा। ___ "बोलो ,दुष्टों तुम जैनधर्म के अनुयायी हो या नहीं । "आचार्य ने क्रोध से जलते हुए दोनों भाईयों से पूछा । अकलंक और निकलंक सिर नीचा किए हुए खड़े रहे । उनके मौन ने सत्य का स्वीकार किया और आचार्य की क्रोधाग्नि को और भी भड़का दिया । "इन्हें कारागार में बन्द कर दो । इन धूर्तो को आज ही आधी रात के पश्चात प्राण दण्ड दिया जाएगा । "आचार्य ने द्वेष और क्रोध से यह आज्ञा सुनाई। दोनों भाईयों को जेल में डाल दिया गया और कड़ी सुरक्षा लगा दी गई । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003695
Book TitleParishah Jayi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain
PublisherKunthusagar Graphics Centre
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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