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________________ -*-*-*-*-*-*-*- परीषह-जयीxxxxxxxx वातावरण ही सर्जित किया गया था । सेठानी ने बहुओं को भी समझा दिया था कि वे उनके बेटों को भरपूर सुख और आनंद प्रदान करें । सकुमाल इन अप्सराओं के साथ क्रीड़ा करते हुए आनंद में दिन व्यतीत करने लगा । उसे ध्यान ही न रहा कि कब दिन ऊगा और कब डूबा । राते रंगीन थी और दिन रजत । सभी पत्नियाँ उसे अधिकाधिक रिझाने का प्रयास करतीं । अपने हाव-भाव ,चितवन-वाणी से उसके चित्त को प्रसन्न रखतीं । सभी यही ध्यान रखतीं कि सुकुमाल का मन विषयों में फंसा रहे । और इस तरह भोग-विलास में सुकुमाल के दिन व्यतीत होते रहे । "सेठानीजी ,बाहर कोई सौदागर आया है । " दासी ने सूचना दी । "बैठाओ उसे " यशोभद्रा दासी को आदेश देते हुए बाहर आई । उसने आगन्तुक सौदागर द्वारा लाए गए रतन जड़ित कम्बलों को देखा । बातचीत के दौरान व्यापारी ने बताया कि महाराज प्रद्योतन अधिक-मूल्य होने के कारण एक भी रत्न जड़ित कम्बल नहीं खरीद सकें। यशोभद्रा ने इस रतन जड़ित कम्बल को देखा ,उसे पसन्द आया और सौदागर को मुंह माँगा दाम देकर कम्बल खरीद लिया। कम्बल सुकुमाल के पास भिजवा दिया गया । लेकिन कोमल सुकुमाल को रत्नों की जड़ायी के कारण कम्बल कड़ा लगा । इसलिए उसने उसे ना पसन्द करते हुए वापिस भिजवा दिया । सच भी है, सुकुमाल भोग-विलास की उन कोमलताओं को भोग रहा था ,जिनमें कहीं कोई कड़ापन नहीं था । सेठानी को आश्चर्य भी हुआ और आनन्द भी । उसे आश्चर्य था कि यह बहुमूल्य कम्बल उसके बेटे ने पसन्द नहीं किया और प्रसन्नता इस बात की थी कि बेटा भोग-विलास में इतना डूब गया है कि उसे रल जड़ित कम्बल भी गड़ने लगे । यशोभद्रा ने इतने बहुमूल्य कम्बल के बत्तीस टुकड़े करवाकर बहुओं के लिए जूतियाँ बनया दीं । रत्न जड़ित कम्बल के रत्न बहुओं की जूतियों में जगमगा उठे । बहुएँ इन जूतियों को पाकर प्रसन्न थीं । "महाराज यह जूती मेरे छत पर पड़ी थी । रत्न जड़ित इतनी कीमती जूती किसी महारानी की होगी ,यह समझ कर मैं यहाँ लौटाने आयी हूँ।" जूती को महाराज को प्रस्तुत करते हुए नगर की प्रसिद्ध नर्तकी ने कहा । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003695
Book TitleParishah Jayi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain
PublisherKunthusagar Graphics Centre
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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