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________________ xxxxxxxxxxxx परीषह-जयीxxxkkkk नहीं है । यह सब मेरे ही पूर्व जन्मों के अशुभ कर्मों का उदय है । " कुछ समय पश्चात सेठ सुदर्शन सीठे जिनालय में पहुंचे वहाँ विराजमान विमलवाहन मुनि की वन्दना की । और शान्त चित्त होकर दीक्षा प्रदान करने की प्रार्थना की । सेठ सुदर्शन के इस निर्णय से सभी चकित थे । इतना श्रीमंत सेठ सचमुच में जो सुदर्शन है ,ऐसा रूपवान युवा धन-सम्पत्ति का त्याग कर रहा है । यह आश्चर्यजनक घटना है ।सारा नगर इस अलौकिक त्याग को देखने और अनुमोदना करने एकत्र हो गया । राजा मन्त्रीगण सभी परिजन और पुरजन एवं मित्रों ने उन्हें हर तरह से समझाने का प्रयल किया । मुनि-जीवन के कष्टों से भयभीत किया । पत्नी मनोरमा और पुत्र सुकान्त ने भी अश्रु भरे नयनों से आग्रह किया। लेकिन अब सुदर्शन सेठ पर इसका कोई प्रभाव नहीं हो रहा था । उन्होंने सबको सम्बोधित करते हुए अपने उद्गार व्यक्त किए - __ “महाराज! मन्त्रीगण! प्रजाजनों ! आप सब का मुझे स्नेह और आदर मिला है ।छोटे से जीवन में मैंने संसार के वैभव को भोगा है । मुझे मेरी पत्नी मनोरमा ने अपार सुख दिया है ,वे मेरी सही अर्थों में धर्मचारिणी रही हैं । मेरे पुत्र सुकान्त भी आज्ञाकारी योग्य पुत्र हैं । मुझे अपने मित्र कपिल का प्रेम मिला है । लेकिन पिछले दो दिन की घटनाओं ने मुझे यह आभास करा दिया कि देह का सुख वासनाओं को जन्म देता है । और ये वासनाएँ ही समस्त क्लेषों का कारण हैं । मुझे यह अनुभव हुआ है कि इस शरीर का सुख ही भव-भव के दुःख का कारण है । भगवान की आराधना सुख का कारण हो सकती है । मैं उस आत्मारूपी भगवान के सानिध्य को पाने के लिए इस भौतिक संसार का त्याग कर रहा हूँ । मेरे द्वारा आप किसी को भी किसी प्रकार का कष्ट पहुँचा हो तो मुझे क्षमा करे । यदि किसी ने मुझे कष्ट दिया हो तो भी मैं उसे क्षमा करता हूँ | आप सब मुझे प्रसन्नता पूर्वक आशीर्वाद और शुभकामनाओं के साथ आज्ञा दें।" सबसे क्षमायाचना करते हुए पुनः मुनि महाराज से दीक्षा की याचना की। लोगों के मुख से जयजयकार की ध्वनि गूंज उठी । लोगों ने देखा कि सेठ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003695
Book TitleParishah Jayi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain
PublisherKunthusagar Graphics Centre
Publication Year
Total Pages162
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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