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****** परीषह-जयीxxxxxxx महिलायें जिनमती सेठानी के सौरकक्ष में उनका अभिनन्दन कर रही हैं । सौहर के गीत गाए जा रहे हैं । सेठ जी की ओर से सभी मंदिरों में पूजा विधान कराये जा रहे हैं । चम्पापुर के महाराज और महारानी स्वयं नगर सेठ वृषभदास की हवेली पर अभिनन्दन देने पधारे हैं । महारानी ने तो नवजात शिशु के गले में रत्नों का हार ही पहना दिया । आज सेठ वृषभ दास के घर सेठानी जिनमती की कुक्षि से पुत्र ने जन्म जो लिया था । इसी शिशु के जन्म के उत्सव में सर्वत्र आनन्द छाया हुआ है ।
___ बालक इतना दर्शनीय और रूपवान था कि उसका नाम ही 'सुदर्शन' रख दिया । उसी दिन राज पुरोहित की पत्नी ने भी पुत्र को जन्म दिया था , जिसका नाम कपिल रखा गया था | पुरोहित पुत्र और श्रेष्टि पुत्र दोनों साथसाथ सुख सुविधाओं में पलकर बड़े हो रहे थे ।
बालक सुदर्शन दूज के चाँद की तरह वृद्धिगत हो रहा था । उसकी छोटी सी हँसी और मुस्कराहट पर सेठ-सेठानी ही नहीं अपितु सभी लोग मुग्ध थे । उसकी किलकारियाँ माता जिनमती और पिता वृषभदास के हृदय सागर में हिलोरें बनकर लहराती । योग्य समय पर शिशु सुदर्शन को विद्या अभ्यास कराया गया । प्रखर बुद्धि के कारण बालक ने बहुत ही शीघ्र विद्या ग्रहण की । किशोरावस्था तक पहुँचते-पहुँचते सुदर्शन ने लौकिक और धार्मिक शिक्षा पूर्ण की । वह व्यापार आदि गुणों को सीख गया । साथ ही कला और संस्कृति के प्रति भी ज्ञानवान बना । इन सब के साथ उसने जैनधर्म के महान सिद्धान्तों का भी अध्ययन किया । युवक सुदर्शन सचमुच ज्ञानका भण्डार तो बना ही ,उसका रूप और सौन्दर्य भी निखर उठा । कामदेव को लजाने वाला उसका रूप सभी के लिए आकर्षण और आह्लाद का कारण बना । लेकिन ,इस रूप में- यौवन में कही वासना नहीं थी । उच्छंखलता नहीं थी ,सौन्दर्य और शील का संगम था सुदर्शन । वाणी की मधुरता और विवेक से उसने सब के मन मोह लिए थे । उसे यौवन सम्पन्न जानकर अनेक श्रेष्टी अपनी कन्याओं के विवाह के लिए लालायित हे उठे थे।
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