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________________ आठवाँ अधिकार :: 319 कर्मक्षय का क्रम सम्यक्त्व-ज्ञान-चारित्र-संयुक्तस्यात्मनो भृशम्। निरास्रवत्वाच्छिन्नायां नवायां कर्मसन्ततौ॥20॥ पूर्वार्जितं क्षपयतो यथोक्तैः क्षयहेतुभिः। संसारबीजं कात्स्ये न मोहनीयं प्रहीयते॥21॥ अर्थ-सम्यग्दर्शन, ज्ञान व चारित्र के सामर्थ्य से आत्मा आस्रव को रोकता है, जिससे कि नवीन आनेवाली सन्तति रुक जाती है। नवीन कर्मों का आना रुका कि आत्मा के पूर्वार्जित कर्मों का क्षय होना भी शुरू हो जाता है। कर्मक्षपणा के हेतु जो पहले कह चुके हैं वे ही हैं। उन हेतुओं द्वारा सबसे प्रथम मोहनीय कर्म का क्षय होता है। मोहनीय कर्म ही सब कर्मों का और संसार का असली कारण है। उसका यहाँ पर सम्पूर्ण क्षय करना पड़ता है। जब तक इसका समूल नाश न हो तब तक दूसरे कर्मों की जड़ कटना असम्भव है। मोहक्षय के बाद किन कर्मों का क्षय होता है? ततोऽन्तराय-ज्ञानघ्न-दर्शनघ्नान्यनन्तरम्। प्रहीयन्तेऽस्य युगपत् त्रीणि कर्माण्यशेषतः॥ 22॥ अर्थ-मोहक्षय हुआ कि बाद में एक साथ अन्तराय, ज्ञानावरण, दर्शनावरण-ये तीन घाति कर्म समूल नष्ट हो जाते हैं। मोह का क्षय होने पर ये शेष कर्म टिक ही नहीं सकते हैं। मोहक्षय से होनेवाला परिणाम : दृष्टान्त गर्भसूच्यां विनष्टायां तथा बालो विनश्यति। तथा कर्म क्षयं याति मोहनीये क्षयं गते॥23॥ अर्थ-जिस प्रकार गर्भसूची नष्ट होते ही गर्भगत बालक मर जाता है, उसी प्रकार मोहकर्म हटते ही शेष कर्म नष्ट होने लगते हैं। गर्भसूची नष्ट होने पर जिस प्रकार बालक थोड़ी देर तक भी जी नहीं सकता, उसी प्रकार मोह नष्ट होने पर कर्मों में टिकने की शक्ति नहीं रहती है। इस प्रकार यहाँ तक चारों घाति कर्मों का नाश हो जाता है। स्नातक अवस्था की प्राप्ति ततः क्षीणचतुष्कर्मा प्राप्तोऽथाख्यातसंयमम्। बीजबन्धननिर्मुक्तः स्नातकः परमेश्वरः॥24॥ अर्थ-चारों घातिकर्म नष्ट होते ही अथाख्यात अथवा यथाख्यातसंयम की प्राप्ति हो जाती है। बीज के समान बन्धन का निर्मूल नाश होने से बन्धन रहित हुए योगी स्नातक कहलाने लगते हैं। उसी समय परम ऐश्वर्य के प्रकट होने से वे परमेश्वर कहलाने लगते हैं। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003694
Book TitleTattvartha Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitsagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2010
Total Pages410
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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