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164 :: तत्त्वार्थसार
34. मानानुमतचित्त संरम्भ, 37. क्रोधकृतकाय समारम्भ, 40. लोभकृतकाय समारम्भ, 43. मायाकारितकाय समारम्भ, 46. मानानुमतकाय समारम्भ, 49. क्रोधकृतवचन समारम्भ, 52. लोभकृतवचन समारम्भ, 55. मायाकारितवचन समारम्भ, 58. मानानुमतवचन समारम्भ, 61. क्रोधकृतचित्त समारम्भ, 64. लोभकृतचित्त समारम्भ, 67. मायाकारितचित्त समारम्भ, 70. मानानुमतचित्त समारम्भ, 73. क्रोधकृतकायारम्भ, 76. लोभकृतकायारम्भ, 79. मायाकारितकायारम्भ, 82. मानानुमतकायारम्भ, 85. क्रोधकृतवचनारम्भ, 88. लोभकृतवचनारम्भ, 91. मायाकारितवचनारम्भ, 94. मानानुमतवचनारम्भ, 97. क्रोधकृतचित्तारम्भ, 100. लोभकृतचित्तारम्भ, 103. मायाकारितचित्तारम्भ, 106. मानानुमतचित्तारम्भ,
35. मायानुमतचित्त संरम्भ, 38. मानकृतकाय समारम्भ, 41. क्रोधकारितकाय समारम्भ, 44. लोभकारितकाय समारम्भ, 47. मायानुमतकाय समारम्भ, 50. मानकृतवचन समारम्भ, 53. क्रोधकारितवचन समारम्भ, 56. लोभकारितवचन समारम्भ, 59. मायानुमतवचन समारम्भ, 62. मानकृतचित्त समारम्भ, 65. क्रोधकारितचित्त समारम्भ, 68. लोभकारितचित्त समारम्भ, 71. मायानुमतचित्त समारम्भ, 74. मानकृतकायारम्भ 77. क्रोधकारितकायारम्भ, 80. लोभकारितकायारम्भ, 83. मायानुमतकायारम्भ, 86. मानकृतवचनारम्भ, 89. क्रोधकारितवचनारम्भ, 92. लोभकारितवचनारम्भ, 95. मायानुमतवचनारम्भ, 98. मानकृतचित्तारम्भ, 101. क्रोधकारितचित्तारम्भ, 104. लोभकारितचित्तारम्भ, 107. मायानुमतचित्तारम्भ,
इस प्रकार जीवाधिकरण के 108 भेद होते हैं ।
अजीवाधिकरण के प्रकार
कषायपूर्वक जो प्रवृत्ति होती है वह जिन विषयों पर हो उसी को अजीवाधिकरण कह चुके हैं। उस अजीवाधिकरण को देखने जायें तो इतने प्रकारों में दिख पड़ेगा; (1) कुछ चीजों का संयोग या मिश्रण
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36. लोभानुमतचित्त संरम्भ, 39. मायाकृतकाय समारम्भ, 42. मानकारितकाय समारम्भ, 45. क्रोधानुमतकाय समारम्भ, 48. लोभानुमतकाय समारम्भ, 51. मायाकृतवचन समारम्भ, 54. मानकारितवचन समारम्भ, 57. क्रोधानुमतवचन समारम्भ, 60. लोभानुमतवचन समारम्भ, 63. मायाकृतचित्त समारम्भ, 66. मानकारितचित्त समारम्भ, 69. क्रोधानुमतचित्त समारम्भ, 72. लोभानुमतचित्त समारम्भ, 75. मायाकृतकायारम्भ, 78. मानकारितकायारम्भ, 81. क्रोधानुमतकायारम्भ, 84. लोभानुमतकायारम्भ, 87. मायाकृतवचनारम्भ, 90. मानकारितवचनारम्भ, 93. क्रोधानुमतवचनारम्भ, 96. लोभानुमतवचनारम्भ, 99. मायाकृतचित्तारम्भ, 102. मानकारितचित्तारम्भ, 105. क्रोधानुमतचित्तारम्भ, 108. लोभानुमतचित्तारम्भ
1. गोम्मटसार में ऐसे संयोगजभंगों की संख्या यन्त्र द्वारा कर लेने की विधि लिखी है। तदनुसार जीवाधिकरणों की संख्या दिखानेवाला यहाँ एक यन्त्र देते हैं। इसमें 'क्रोधकृत - काय - संरम्भ ऐसा प्रथम भेद होगा। दूसरा मान-कृत-काय संरम्भ' ऐसा होगा। इसी प्रकार सर्व भंग जुड़ जाते हैं। चारों कोष्ठकों के एक-एक नाम व एक-एक संख्या जोड़ने से भंग संख्या भी मालूम हो जाती हैं।
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क्रोध
1
कृत
o काय 0 संरम्भ
मान
कारित
4 वचन 12 समारम्भ 36
माया लोभ
4
3 अनुमत
मन 24 आरम्भ
72
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