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________________ स्थूलता के भेद व उदाहरण अन्त्यापेक्षिकभेदेन ज्ञेयं स्थौल्यमपि द्विधा । महास्कन्धेऽत्यमन्यच्च बदरामलकादिषु ॥ 66 ॥ अर्थ-स्थूलता होना भी पुद्गलों की पर्याय है । अन्तिम स्थूलता व आपेक्षिक स्थूलता - ऐसे स्थूलता के भी दो भेद हैं। सबसे बड़े महास्कन्ध की स्थूलता अन्तिम स्थूलता है। बेर, आँवले आदिकों को जो स्थूल कहते हैं वह एक-दूसरे की अपेक्षावश स्थूलता है। बन्ध के भेद व उदाहरण द्विधा वैसिको बन्धः तथा प्रायोगिकोऽपि च । तत्र वैस्त्रसिको वह्नि - विद्युदम्भो-धरादिषु ॥ बन्धः प्रायोगिको ज्ञेयो जतु- काष्ठादिलक्षणः ॥ 67 ।। (षट्पद) कर्म - नोकर्मबन्धो यः सोऽपि प्रायोगिको भवेत् । अर्थ - बन्धन होना भी पुद्गल में ही पाया जाता है । कोई-कोई बन्धन स्वाभाविक होते रहते हैं, उन्हें वैसिक बन्धन कहते हैं । जैसे कि अग्नि, विद्युत्, मेघ । इनमें जो परस्पर बन्धन होता है उसे कोई मनुष्य अपने प्रयत्न से नहीं करता । प्रयत्न साध्य बन्धन को प्रायोगिक बन्धन कहते हैं। जैसे कि एक लकड़ी में लाख लगा देना। ये दो भेद बन्धन के हुए। कर्म का तथा शरीरादि नोकर्मों का जो बन्धन होता है वह आत्मा के प्रयत्न से होता है, इसलिए उसे भी प्रायोगिक बन्धन कहना चाहिए । उक्त भेदों के अतिरिक्त कोई तीसरा भेद नहीं है । तम का स्वरूप - Jain Educationa International तृतीय अधिकार : : 135 तमो दृक्प्रतिबन्धः स्यात् प्रकाशस्य विरोधि च ॥ 68 ॥ अर्थ — जिसके प्रसार में देखने की शक्ति रुक जाती है उसे तम या अन्धकार कहते हैं । प्रकाश से उलटा यह पर्याय है । नैयायिक लोग इसे नहीं मानते हैं । वे कहते हैं कि प्रकाश के अभाव का नाम अन्धकार है। अभाव में अन्तर्भाव सकता है उसे जुदा पदार्थ क्यों मानें ? इसका उत्तर यह है कि अभाव कोई जुदी वस्तु नहीं है। किसी के रूपान्तर हो जाने को ही उसका अभाव कहते हैं, इसलिए चाहे प्रकाश से उलटा ही अन्धकार हो, परन्तु वह भी एक वस्तु पर्याय ही मानना चाहिए। प्रत्येक वस्तु जिस प्रकार बदलती है, परन्तु सत्ता से वंचित नहीं होती। उसी प्रकार प्रकाश पर्याय जब नष्ट होता है उस समय उन प्रकाश परमाणुओं का भी कोई दूसरा पर्याय रहना चाहिए। वह पर्याय अन्धकार के अतिरिक्त दूसरा कोई नहीं हो सकता है। यदि उत्तर पर्याय न होकर ही प्रकाश का नाश हो जाता हो तो कहना पड़ेगा कि एक सत् पदार्थ का अभाव हो गया, परन्तु जो एक समय सत् है उसका नाश होना न्याय विरुद्ध है, इसलिए तम को सत्य वस्तु मानना ही ठीक दिख पड़ता है। नील अन्धकार हट रहा है ऐसी 1. नैवासतो जन्म सतो न नाशो दीपस्तमः पुद्गलभावतोऽस्ति । 2. नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः । इति स्मृतिवचनम् ॥ 3. नीलं तमश्चलतीति प्रतीतेर्भ्रान्तत्वे मानाभावः ॥ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003694
Book TitleTattvartha Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitsagar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2010
Total Pages410
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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