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तृतीय अधिकार
अजीवतत्त्व
मंगलाचरण और विषय-प्रतिज्ञा अनन्तकेवलज्योतिः प्रकाशितजगत् त्रयान्।
प्रणिपत्य जिनान् सर्वानजीवः संप्रचक्ष्यते॥1॥ अर्थ-जिन्होंने केवलज्ञान रूप अपार प्रकाश के द्वारा तीनों जगत् को प्रकाशित किया, उन सब जिनेन्द्र भगवन्तों को नमस्कार करके अजीवतत्त्व का वर्णन करता हूँ। सात तत्त्वों में से जीव तत्त्व का वर्णन हो चुकने पर दूसरा अजीवतत्त्व वर्णन करने के योग्य है। पाँच अजीवों के नाम
धर्माधर्मावथाकाशं तथा कालश्च पुद्गलाः।
अजीवाः खलु पञ्चैते, निर्दिष्टाः सर्वदर्शिभिः॥2॥ अर्थ-धर्म, अधर्म, आकाश, काल और पुद्गल ये पाँच अजीवरूप पदार्थ कहे जाते हैं-ऐसा सर्वदर्शी भगवान् ने कहा है। अजीव के सामान्यापेक्षया ये पाँच ही भेद हैं। द्रव्यों की छह संख्या
एते धर्मादयः पञ्च जीवाश्च प्रोक्त लक्षणाः।
षड् द्रव्याणि निगद्यन्ते द्रव्य-याथात्म्यवेदिभिः॥3॥ अर्थ-जीवों का लक्षण (स्वरूप) कह चुके हैं। पाँच धर्मादिकों के साथ उक्त जीव को मिलाने से सब द्रव्य छह हो जाते हैं। द्रव्यों का यथार्थ स्वरूप जाननेवाले सर्वज्ञदेव ने इस प्रकार छह ही द्रव्यों का कथन किया है। पञ्चास्तिकाय का वर्णन
विना कालेन शेषाणि द्रव्याणि जिनपुंगवैः।
पञ्चास्तिकायाः कथिताः प्रदेशानां बहुत्वतः॥4॥ ___ अर्थ-काल के सिवाय पाँचों द्रव्यों में अनेक प्रदेश माने गये हैं। काल द्रव्य में प्रत्येक सूक्ष्म प्रदेश अलग-अलग रहता है। जिस वस्तु में एक से अधिक प्रदेशों का समुदाय मिल रहा हो उसे संचय (काय)
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