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जापे उनऊ मेडि विस्तारसान्योगाआघरे घोडा पाय नहीं पार, सु जासन पालजी बीहार गावैरी विष्ट थाये विसरासान्योगानामा जीनपियें गए।घार, ऋध्पि सिध्धि उभला हातारा ॥ रूपरेज भयए अवतारान्योगापाउवि उपयंहगुए। डेरो शिष्य, गौतमणुश्प्रएा भो निशहिस।उहे यह जे सुमताणाशान्योगासा घेति॥१शा
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॥ जय श्रीनवार लघुछंह ॥
॥ सुजारए। लविया, समरो नित्य नवाशान्निशासननागम, पौह पूश्वनी साशा ने मंत्रनो महिमा, उद्देतांनसहुपाशासु रत ग्भि चिंतित, वंछित इस हाता॥शासुर दानव मानव, सेव उरेज रन्नेालुविभंडल विथरे, तारे लविथए। मेगा सुरछंहें विससे, मति शय यस अनंत पैसे पहनभियें, ग्नरिगंग्न अरिहंत ॥शाने पन्नरे लेहें, सिध्य यया लगवंत ॥ पंथभी गति पोहोता, अष्ट कुमरि संता उस श्खम्स स्वरूपी, पंचानंतऊ तेहान्निवर प य प्रएायुं, जीने पहचलि खेह।आगच्छमार धुरंधर, सुंदर शशिहुर सोभ ॥उरे सारएाचारएण गुएरा छत्तीसें योभानुतन्नए। शिरोमणि, सागर नेमगंली शात्रीने पह नमियें, खाधारन गुएाधीशाचाश्रुतघर गुए। नागर, सूत्रलएावेसा शातपविधि संयोगें, लांजे अर्थ विभार ॥ मुनिवर गुएान्नूता, उहियें तेडीवाया थोथे पहनमियें, महोनिश तेहना पायापापियाश्रवग ले, पाले पंचायातपसी गुए। घारी, वारे विषय विकार रात्रसथावर पीहर, सोज्यांहें ने साध ॥ त्रिविधें ते प्रएाभुं, परमारथ नि साधा जरि उरि हरि सायएगी. डायणि लूत चैतास ॥ सवि पाप पएगासे, वाघे मंगल भाष । नेणें समरए। संउट, दूर रखे तताल ॥ भिनंपेन्नि प्रेल, सूरि शिष्य रसाला
र्धति॥१॥
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