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________________ ( ५० ) जहसौ वामन नक्षी, भस्तडें इएगावसी । यार ते जांही इच्छपवाड़ी, डा यांग्स शामली ।। यवीर प्रौढा नागारठा, हेवी पहभावती । सोवन अंति प्रलुगुएरा गाती, वीर धेर आवती ॥ तान्शा ॥ अथ श्रीवीरन्निनी ॥ ॥ महावीर निएगंध नाय सिध्द्यार्थ नंघाबंधन भरणंधन्नसपाये सोहापासुर नरवर हा नित्य सेवा उघ । राले लबासुजना पेजभंघाशा जड ग्निवर भाता भोक्षमां सुजशाता॥ जड निग्ननीज्यातास्वर्णत्रीने जाज्याता ॥डन्निपन्नेता नाउमा यातास विन्निवर नेता शाश्वता सुन हाता ॥ शामस्सिनेभी पास नाही जन्मजा साउरी जेड डीपवासचासुपून्यसु वास ॥ सेज छह सुविधास डेवलज्ञा नन्नसारे वाणी प्रशसन्भजज्ञान नास ॥ आन्निचरनगहीसन्नस मोहोटीग्गीस नहीं राग ने रीश नामीनें तास शीशा मातंग सुरशि सेवतो रात हीसागुरी छीत्तमग्ाधीस पद्म लांजे सुसीसनार्धति‍ ॥ अथ यार शाश्वतान्निनी ॥ ॥ ऋषल संघनन वंदन डीले, वारिजेए। दुःज वारेन्ाावमान ग्निवर वली प्रभो, शाश्वत नामें जे पारेलाल ताहिङ जेथें भली होवे, यार नाम चित्तधारेलतेणें धारे ने शाश्वत निन्नवर, नमीठों नित्य सवालीर्घ्य ग्जघो त्रीछे सोडें थर्ध, डोडी पंनरशें लगोलाजी परडोडी तालीश प्रएाभो, अडचन सज मन जाएशोकछत्रीश सहस जसी ते पीपर, जिंजतएगो परिमाणोलाजसंज्यात व्यंतर - ज्योतिषिमां, प्रएराभुं ते सुबिहाएशोन्गाशारायपसेएगी कवालिंगमें, ल गवती सूत्रे लांजीलानंजुद्दीपपन्नत्ति हाएगांगें, वीवरीने घरं घजीला वली अशाश्वती ज्ञाता उत्पभां, व्यवहार प्रभुजें ग्जाजीला तेन्निप्रति भासोपे पापी, निहां जहु सूत्र छेसाजीन्ताआरजे ग्नि पूलथी भाश घऊ, शान र उहायाने मसुरीयाल प्रभुज सुरवर, हेवीतएगा समुहायानंहीसर अठ्ठार्ध महोच्छव, उरे जति इश्जलशया Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003689
Book TitleJain Kavyaprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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