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राम अभिनी, हामिनीसी हे। सा उभसनयएगी, विपुल चयएगी, यउद्वेसरी गुएाणेह ॥श्रीरान् विन्य, सुरिंहपाये, नित्य नमतीनेड़ उड़े य रत्न, वायऊ नैनशासन, विघ्न निवारो तेह।नार्धति ॥
॥ अथ श्रीशत्रुन्ग्य स्तुति ॥
॥ श्रीशत्रुंन्ग्य गिरितीरथ सार, गिरिवर मांहें नेम मेरेबीहार ठाकुर राम अपाशा मंत्र मांहें नवद्वारन लघु, तारा मांहे नेम चंद्र ब जाए, नसघर भांडेन्स न्नएंगा पंजी भांडे नेमीत्तम हंस, जुलमाने मऋषलनो वंश, नालितगोळे अंश । क्षभावंत भांहेभ खरिहंता, तपशूरा मुनिचर महंता, शत्रुंग्य गिरिगुएावंता ॥ शाखल जन्ति सं लवग्नमिनंघ, सुभतिनाथ भुज पूनभयँहा, पद्मप्रत्न सुजा॥श्रीसुपार्श्व यंगल सुविधि, शीतल श्रेयांस सेवो जहुनुध्धि, वासुपूज्यभ ति सुधिताविभस जनंत ग्निधर्म मे शांति, डुंथु जर भत्सिनमुंथे अंति, मुनिसुव्रत शुध्य पंथि शानमी पासने वीर थोवीश, नेम विना से नित्रेवीश, सिद्धगिरिजाव्यार्घशशाशात्लरतशय न्निसार्थे जोले, स्वाभीशत्रु अन्य गिरि हुएातोसे, निग्ननुं वयन समोसे ऋषलम्हे सुशीलरतराय, छहरी पासंताने नरन्नय, पातङ लूडो थाया। पशु पंजीने घेएा गिरिजावे, लवत्रीने ते सिध्धन थावे, अन्ग्शभर पहपावेन्निभतमें शत्रुले बजाएयो, ते में खागम हिल भांड़ें जाएयो, सुएातां सुजवीर जा एयो॥आसंघ पति लग्तं नरेसर आवे, सोवन तणां मासाह उरावे, भ शिभय भूरति डावे ॥नालिराया भई हेवी भाता, ज्याह्मी सुंदरी जेहेन वि ज्याता, मूर्ति नवाएं स्यातागोभुजने यलेसरी हेवी, शत्रुंन्य सार रे नित्यमेवी, तपगच्छ बीपर हेवी ॥ श्रीविन्यसेन सूरीश्वर राया श्री विन्य हेच सूरि प्रएाभी पाया, ऋषलहास गुए। गाया ॥मा घेति शत्रुन्ग्य स्तुति समाप्ता ॥
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