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________________ ( ४ ) सी, पीपशम रस नाही ॥म्णा ॥ छति क्रोधनी सञ्जाया। ॥ अथ माननी सळाय ॥ ।। रेलव भान न डीलयें, भानें विनय नग्नावेरे ॥ चिनय चिना विद्यानहीं, तो डिभ समङित पावेरे ॥ रेणाशासमंडित विए। पारित्र नहीं, चारित्र पिएानहीं भुक्तिरे ॥ भुक्तिनां सुजछे शाश्वतां, ते डेभस हियेंब्लुक्तिरे शरेणाशा विनय वडी संसारमां, गुएामां ग्ञधिकारीरे॥ मानें गुएान्नये गली, प्राणी लेने विधारीरे ॥रेगाआ मान डब्ले रावणें, ते तो रामें भारयोरे ॥ दुर्योधन गरचेंउरी, जंतें सविहारयोरे रेणाना शुडां साम्डां सारिजो, दुःजहायी जे जोटोरे पाणीघ्यरन उहे मानने, हेले हेशवटी रे ॥ रेणाया र्धतिया ॥ अथ भायानी साय ॥ ॥ समन्तिनुं भूसन्नएणीयें, सत्य वयन साक्षात सायामां समङित बसेल, मायामां मिथ्यात्वरे ॥ प्राणी भडरीश माया सणार आशा भेजांडणी ॥भुजभीडो ब्लूहो भनें, ड्रूड उपटनोरे डोटाल तोलल उरेल. पित्तमांहे ताडे पोटरे ॥ प्राणाशा आप गरनें जाघो पडेल, पान घरे विश्वास ॥भिनशुंराजे आंांतरोल, जे भायानोपा सरे॥प्राणाआनेहशुंजांघे प्रीतडील, तेड़शुं रहे प्रतिलाभेस नछंडे भन तगोल, जे भायानुं भूसरे ॥ माना जातपडीधुं मायाउरीन्छ, भित्रशुं राज्योरे लेघाभल्सी निनेश्वरन्नएान्ने, तो पाभ्या स्त्रीचेहरेशा भागाचा अदृयरत्नङहे सांलसोल, मेसो भायानी जुड भुक्ति पुरीन्नवातएगोल, जे भारगछे शुद्ध रे । माणासार्धनिय ॥ अथ सोलनी सञ्ञाय ॥ तुमें सक्षएान्नेन्ने सोलनांरे, सोलेंनन पामे क्षालनाशासो in Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003689
Book TitleJain Kavyaprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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