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________________ (४३४ ) रतां, सहेनें शील गमावियें॥शायासनट चिट नरशंरे, नयानले डीयें ॥भारणन्नतांरे, आधुं खोढीयें ॥ गामधुं ते मोढी चातर तां, घन रेडां शोलीयें ॥ सासू जने भानान्एयापिए, पलम्पासन योलीयें ॥सुजदुःज सरन्युं पाभीयें परा, दुसाधार न भूडीयें परव शवसतां प्राएातन्तां, शीयस्थी नविधूडीयें ॥आयलव्यसनी सा येरे, पातनडीन्छयें हाथ हाथेरे, ताली नसील यें ॥ गातालीनबी तेंनन्य नहीलें, चंचल चालन थालीयें ॥ ग्रनेऊ विषय जुड़ें वस्तु देह नी, हाथे पएानविष्ठातीयें । मेटि उंदर्प रूप सुंदर, पुश्ष पेजीनभोन हियें।ातृएाजसांतोसे गएणी नेहने, इश्यि साभुंनन्नेर्धयें॥नायासा पुरष पीयारोरे, वसि नवजाएगीयें ॥ दृष्यते पितारे, सरजोन्नएगीय गान्लएपीयें पीयु विए। पुरष, सघता सहोहर सभ बडे।पतित्रता नो धर्म नेतां, नावे शेर्घ तडोवडें । हुरूप कुष्टी दूजडोने, दुष्ट दुर्जन निर्गुणो ॥भरतार पामी लाभिनी, ते धेरथी अधिओ गुएगी ॥माधा लाजभर कुमारें रे, तल सुर सुंदरी ॥ पवनंन्ग्येरे, जंग्ना परिहरी ीणापरिहरी सीता रामेंवनमां, नसें हमयंती वसी ॥ महा सतीभा थेष्ट पडयां पएा, शीयसथी ते नवि धली । उसोटीनी परें उसीन नेतां, अंतशुं विहडे नहीं॥ तन मन वचनें शीयस राजे, सतीतेन्नगो सही याला रूप हे जाडी रे, पुरषन पाडीयें ॥व्यास घर्धनेरे, मन नजगाडीयें ॥ बीणाभन न जगाडियें पर पुरषनुं, लेगन्नेतांनविभसे उस माथे पढे हूडां, सगां सहु दूरेंटसे॥जए सरल्योडीच्याट थाये, प्राए। तिहांलागी रहे ।। हि सोङ पाने खापहा, परसोड पीडा जहुसहेा। राजापासारामने रूपेरे, शूर्पनजा भोही । अन्न सीधुरे, मने घन्त जोगीगार्धन्त जोर्घ हेज जलया, शेड सुदर्शन नविधत्यो गलरतारखागंल पडीलोंडी, अपवाह सघसे पीछत्यो ॥जमनी जुध्धेंग मिनी ने, वायूस चाह्यो घगापाशीयलथी यूडी नहीं, दृष्टांत जेभ तालगायत शीयस मलावेंरे, न्नुवोशोले सतीत्रिलुव Ja Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003689
Book TitleJain Kavyaprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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