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________________ ( ૧૧ ) आप संलारा ॥ सजणाआ एर्धीता ॥ अथ प्रथमपहं ॥ ।। राग उष्याएा । छजीतेरी सुहावन सागी, छजी तेरीगाटेशाघ र्शन हेप्यो पास डुंचरडो, लाग्य हशा जजन्नगी ॥ छ्जीणाशाखानं मंगल सुज संपूरन, लव लव लाव' लागी ॥छजीगाशाशंजेश्वर प्रलु पास चिंतामणि, पासगोडी गुएाराणी पछजीगाआ चिंता धूरए मंगल पूरएा, पास जयवंती सागी ॥छजीणानामयाङरो प्रलु पारसभगसी, भया भुक्ति जन भागी छजी ॥ र्धति॥ ॥ अथ स्तवन ॥ ॥ राग मलाती एन्नगेशी निन लम्त उहावे, सोपे सो संसारी हे त्रस लवडी हुत्या नङरे, यावर उईएगा अरी हे।ान्नगाशा थापाभो सो महत्तनसेवे, थोरी भारी वारी हे । पंथनी साजें पाएीग्रहएाउर ता. जवर स्त्रिया ज्ञह्मचारी हे ॥ न्नगाशास्नान प्रमितत्सन्निडीसे वा, परिग्रह संख्या धारी हे ।। रूपचंह समङितडे सछन, ताएं पंहना ह भारी हे।लगेगा। छति॥ ॥ अथ लाती ॥ ॥ जैसे सेरजिथ डौन हिवान हेवो । जैसेगा पानीडे ओट पच नडे अंगरे, हश हरखानेडी भंडाए। हेषो । मैसेनाशा पांयेंही भेबीश तस्कर, नगरी उरत हेरान हेवो ॥ भैसे गाशा अन्न पोडार सुनीतजन्न ज्यो, जडे येतनराय सुण्यान हेवी।। जैसे गाआनाथ निरंग्नलक्ति तेरी, हाथभां सास उजान हेयो। जैसे नाना रूपचंद म्हेतेहुनेवारी पेषो दुसमन मान शुभान हेवो ॥ जैसे॥ ॥ Jan Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003689
Book TitleJain Kavyaprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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