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।। श्जथ प्रथमपदं ।।
।। राग घरी ।। तेरे घर में हें सवाह, जागांनन्न ।तेरे घर मेंο आज्ञान गुसाज चारित्र पंजेसी, विनय वेस शुलसाराथिश्याचं पा महङ रह्यो है, भरवा मोड़ निवार ॥ जागांना शाशय चेसिसो धंध सोहे, जातमशेष सुधार राज्यारी क्षमाङ्गी नहां तहां सोहे, सिंथत ग्न मृतवाशा जागांणाशाजारे व्रत तपवृक्ष इस्यो है, घ्श लक्षएा सगि डाशाधन्य पुश्षवे जाग निहारे, अविवस से विद्याशा जागांना
॥ अथ द्वितीय पहं ॥
वाहिनी रज्छु सोय, तैरे भनभेगावाहिनणारे आविरा नडीयो चेपारी, निएग में रोग हाल दिया लारी ॥ चाहिननाशाजोछि पूल न्युवा जेले, जाजर जान्छ हारी जिनमें ।। डर से पालनेडी तै यारी, जेड हिन डेरा हीयगा जनमें गवाहिनणाशान्नूठे नेना पीसत चांही, जिसके सोने सिडी थांही ॥ जेहिन पवन धसेगा जांघी, ना हुए वित्त सगावे घनमें ॥ डिसडी जीजी हिसडी जांही वाहिनगा भट्टीमें भट्टी भीस जाएगी, न्युं पाएगी में पाएगी ॥ भूरज सेंती भूरज भ जिया, नेम ज्ञानीशुं ज्ञानी ।वाहिनना चाहत हरजसुगोलपिमा एसी, मे पह हे निश्वाएगी ।लवनड़ी उछु जाशा नाहिं, शिरपर डाल निशाणी ॥वाहिनणाय त
॥ अथ प्रथम पहं ॥
राग देशजभोली मोह्योरी भाई, पास निएां भुज भडे मोयोगाटेआवरत भंडए। भूरत बांही, सोया हुहे सरडे मोह्यो आशा मस्त भुगट छानें होय डुंडल, जान्नू जंपडे पटडे ॥भोयोगाशा संगी संगी जन्ज जनी है, उरङसजी पटडे । भोली गाआश्येताधि बस में जेसे गभाया, चेतो भनमें जरडे । भोह्योगांना निनवरछां
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