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________________ - (४०५ ) निहाशापय परभशुरध्यान निमित्तम भाक्रम परणपडाशान हिंगामासीसमग्री निलल्य धर्भध्याशिरवाशानन्मस सवैहीनवपउरी,लपिसमष्तिभंगीशानहिंगाचा पनि ॥ अथ यतुर्थ पर ॥ जोरीमेवनडोनेभिमाशाजोगाटेशासभुश्वविन्यन नगन,न्नदुसन्यिायाजोगापाशिशभुटमान नेइंडसागर भोतियनोहार राजोगाशावसन अनुपमसुंधरा नित,नानालांनि न्युहायाजोगाजापूरणलाथवडोरान्नूपरे|| पायो यहलरताशाजोगाचा ति। ॥ अथ पंथम पटं ॥ थारोणपटेश मानेरोलागेछेलाथारोणपरेशाटेगा ज्ञान ल्याउन नौशुन भेटन, संशय रहेनहिं पेशामानेगापभोहा विषमल्वर पूर उपराउँसभडित सुजवेशाभानेगावापर्यह नित्यमेह थाहत, लन्ति पढावन हेताभानेगाना पति ॥ अथ प्रथम प॥ रागवतीभाई भेरेग्निल\प्रीतउरीप्रीतीन पटेबाश्रीनभिनाथरिनहालसें,सागिषगनजीभानाशामा, तापिता विल्यनरपतिसुत,मिथुपान्नमपुरी गापरवीश धनुषप्रन भागनद्युती,सेवत परणहरीभानाशाशहुन्नरचरसोना यु,भहिमान्यता होष मढार रहित हितकार,साघी शिवन गरीराभाठागारज में थरएभसयित्तहीनो,तबही विपत्तट सीहरजयामानंहपहपायो,भनडीमाशइसीभाईनान्ना Jal Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrarying
SR No.003689
Book TitleJain Kavyaprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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