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( ३७८ ) ।। जय प्रथम पहं ॥
॥ राग जिहागानैिन धर्म पालोरे प्राणी, तल जाणस अलिभान नैनगाटेमा छड्डायडी नथए।ा उरखो, घ्शविध धर्म संलापो॥नैिनगा शाजावीश परीसह लावना जारह, धार उषाय टालो ॥नैनगाशा मनवय डाय त्रिकाल पूजन डर, नैन धर्म अन्नवाल नैननाआन गतरामजी खेही विनति, जावागमन निवारो ॥ नैनणाना ॥
॥ अथ द्दितीयपहं ॥
सरन तेरी जायोमें प्रलुलं, तुम तारङ नाम घरायोपासना ||टेशाजधम पीप्पारन जिरह तिहारो, हमहूं भत विसरायो॥स रननाशाभों पतितनहूं पावन रहो, पराग्रहुं पित्त पायो॥स रनगाशानगत पीहर्षितें पारडील यें, हरजयंहणुनगायो।सरगाउ
॥ जथतृतीयपहं ॥
शीयललविद्याशेरेन्ननी, शीयस घरमङो भूसा शीगाटेड शीयस शेड सुदर्शन पाल्यो, शूसी लर्धरे विभान ॥शीयसनाथा सती सीतानें शीस प्रलावें, जग्निझीर लयो पाएगी ।शीयसनांश सती खुलहाशीपञजंडे, नसलर भासणी ताएगी । शीयसनाआ शीस तन्यो संापति रावएा, पहुतो नरड निसाएगी ॥शीयाना गंग हेतुभशीस लन्ने लवि, पावी शिवपुर हानी । शीयसनापा
।। जयचतुर्थपदं ।।
जैसा ध्यान घरचा लेगी, ऐसा ध्यानगारेआनगन पो बीहाथडुसावै, नासारष्ट जाऐगालेगी गाशा जाहिरतन भसीन साहीसे, जंतरंग जीन्नरा हे। विषय दुषाय त्याण घर धीरन, उर्भन संगग्जच्या रेलेगीणाशासुधा तृषाहि परीसह वरलनात्म
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