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घ्नी वाएगी।
जिया, तिहां भन नवी सूरिरान सहा तत्त्वतान्न, निनेाणमप्रौ षट्वर्णवर्णित गुएशोलमाना, पंचाधारनेहि दिसावधाना॥शालवि प्राणिने देशना देशडालें, सहा जप्रभ त्ता यथा सूत्र जाले ॥ निदेशासनाधार हिगृहंति उत्पा, नगें ते भिरंलवन्ने शुध्धन्ल्पा ॥शा
तिच्या ॥ जथ पीपाध्याय यैत्यवंदन ॥
॥ जीपन्नति छंघा सुत्तत्थ वि धारएा तप्पराएं, नमोनभोवा यगडुंन्राएंगलुन्ग्गप्रयात छंघा नहीं सूरि पए। सूरिगुएानेसु हाया, नभुंचाया त्यक्त मह मोह माया ।। चसी दाहशांगाहि सूत्रा र्थ हाने, निडे सावधाने निश्ष्यालिमाने ॥शा घरे पंथने वर्णच ति शुशीधा, प्रवाही द्विपोरछोने तुष्य सिंहा । गली गच्छसं धारणे स्तंललूता, नेपाध्याय ते पंहिसें वित्त मलूता ॥शा ईति ॥ अथ साधु चैत्यवंदन ॥
।। बीपन्नति छंघा साहूए। संसाहिय संन्माएां, नभोन भो शुध्ध घ्या घ्माएां ॥लुरंगप्रयात धंधा करे सेवनारिवाय गणएगीनी, उरें बना तेहनी शी भुगीनी ।। समेता सहा पंथस मिति भिगुप्ता, त्रिशुप्ते नहींअम लोगेषु सिता । शावली जाह्य जल्यंतर ग्रंथि टाली, हो ये मुक्तिने योग्य चारित्र पासी॥शुलाष्टां गन्तेणें रमे चित्तवासी, नमुं साधुने नेह नि पाप टाली ॥शार्धतिय ॥ अथ दर्शन चैत्यवंधन ॥
॥ पीपन्नति छंघ नियुत्त तत्ते ३ बज्जएास्स, नभोनमोनि लहंसएस्सलुनंगप्रयात छंघा विपर्यास हुडवासना रूप मिय्या, रसेने जनाहि जछे ले जपध्या । निनोति होर्घ सहनथी अ इधानं, उहिये दर्शनं नेह परमं निधानं॥ाशा विना नेहुथी ज्ञानमज्ञा नरूपं, परित्रं विचित्र नपारएय भूपं ॥ मृति सातने पीपशम क्षयें नेह होये, तिहां ष्याप ूपें सहा आपलेवे ॥
ताशा
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