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॥ जथाहितीयप ॥ पशुजनंतअपारप्रनुतेरेशुरागाटेगासहसरसनाजी रत सुरनर तोहीनपावे पाशाप्रलु पाउन मंजराशिनेताश,भे रिशिरिओलाशापरभ सागरपरिभाषा,उरतजैन पियाराप्रल पालतिएलरलेशलायो सुविधिनिन सुजनशासमयमा राहत भई स्वाभीतुभाशेभाषाशामनुग्गडा गति
॥जयतृतीयपहुं॥ उरो जैसीजक्षीश पत्नु भोय,उरोजेसीजक्षीशाटेगाहरा रहार भेनाहिलटपुंनभुंडिशीयनशीशामलगाशाशुष्यजात भसागरी,घटीरागनेरीशाभोहपातजस्तछिन रमेज्ञा नजघीशाप्रलुगाशाजायेन्नयेपाससाहिजनगतपतिनग शाशुरापिसासजीभाशपूरो रोमापसरीशाप्रलुगागा ॥
॥ अथ चतुर्थप९ ॥ एसोसासोचेसास, सोसासोसासाटेगास जएीपर गोसएडी, होतन्युं महासागसोनापानलरी सीघरीवाईचीय पियाशानिहांलवनराजवेडी जैन हेमाश सोनाशाश्याए हिनणसास भीसाउत गयराभ ल्यासानामस्थिर लिनशन तामें खेहुं स्थिरनसवासासोगा
॥ जयपंयभप ।। पैतन येतनासंलार,चेतन पेतनासनाशाटेडापार्यप्रलुन पित्तधाराायेगामेमांडणी वसउससोषीतनिडे,वीतरागार यारानगपति निनरान विननगनौर जैन माघाशायेगाशाय ||नसुनिनशन नपा अवासुंशुगधाशानयनसुंपत्लु उपनिरजी,
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॥७॥
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