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________________ (७७०) ॥ जय द्वादृश पहं ॥ , ।। इतेरो भुज हेतुं,नालिन्लूडे नंघाडी छ तेरो भुजगानालिनूनंहा, प्रलु नगत्देवंधानैसें मेरे उहिन र्भ हे ईहाडीगाथा लगीनें महारान कुमार, सुर नर ठाढे द्वारा तेरो भुजन्नेवत थडोर नेसे संघातेरोगाशारननीडो तिभिर गयो, ग्नईएाद्योत लयोग हीनें भोई हरस, मिटत दुःखेज हंघापीठना पाठांतरे॥ ङिरए। प्रणरलर्छ, हलयोभंााठी तेरीगाउ आउर प्रलुपीपगार, भिटत उरभविहार दूर उशेनाथ, जनाथ डेरा हा नानाने लवि पूल रे, तिएाहिंडुं शिव चरे॥स्वर्ग लुयंग सोङ, दुरत जानंा ॥ीणापण टोडर निनश्युं नियम, तुमहिंशुं सागो प्रेम ॥तुभारी हि ध्यान धरन, लागी निनयँहा ॥ीठ तेरोणाझा छिति॥ ॥ जथत्रयोदृश पहं ॥ ॥ पीठत प्रलातनाभ, निनलडो गार्धयें। बीउत पलातनाभणाटे आनालिकडेनंह, परएा चित्तलार्धों ॥ ग्जानंडे हन्न, पून्तिसुरिहं रंधा जैसे निनरान छोड, सोरहून घ्या॥हत लातना आशानयरी अयोध्या हाभ, भाता भरैदेवानामासिंछनरषलन्नडे, चरणां सुहार्ध में गठित मलातनाशापयिशें धनुष्य भान, हीपत नङवाना थोराशी पूर्व सक्ष, आयु थित पार्छोंगडीहत मलातनाओ जाहिनाथ जाहिहेब, सुरनर सारे सेवा हेवनडे हेच प्रलु, सजेसुज हार्धयें । जित प्रलातगान्नामलुडे पाधरविंध, पूनत हुरजधंधाभि टो दुःजहंह, सुज संपा वषार्धोंडीत प्रभातणाचा पर्छति ॥ अथचतुर्दृश पहं ॥ ॥ वामानंदनपारिन्ने, में जाधीन तुभाश वाभानंहनगाटे आनीसम्भल निभुतन छविछानत, वाणी सभृतधारापालोधनवि For Personal and Private Use Only Jan Educationa International www.jainelibrary.org
SR No.003689
Book TitleJain Kavyaprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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