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( ३५८ ) ॐ प्रक्षिएा रेरारे ॥ मुनराणाशापयशब्देवाने वलीं, नृत्यम्म निगहिरारे ॥Îपसंहगुएागावत हरजित, एस निरंजन तेरारेश भुनाउ
॥ अथ सप्तम पहं ॥
॥ तुही निरंजन तुही निरंजन, तुही निरंजन मेरारे ॥जे जांएगी॥ तुही निरंजन घष्ट हे मेरा, हुई डीपासन तेरारे ॥ समरे ध्यान मंगलगा 1, भावत अंग में लहेरारे ॥ तुहीनाशादेवी हेवास्छन् कुंपणी तुं मेरारेशलिंग तीनशे ज्यास भय्यो हे, सज भटिना ठेहरारेतुंगा हुम्भ तुमारो सिर पर धारें, जैसे इलाशेहरारे ॥ रूपथंह हरशनही - नें, दूर नहुवे लवरारे ॥ तुहीनाओ छति॥
॥ अथ अष्टम पहं ॥
॥ सोऽथौहडे पार डीनारे, पूरा ज्ञह्मावाशा हे सोडवाटेशा पिस्तामीश सञयोग्नङी शिक्षा, स्वेटिङरल छीन्याशा हे।सोनाशा निर्भस न्योत विराने साहिज, ज्ञान ध्यान पराशा हे ।सोनाशापं यवएडी धन्न इंडे, ज्या उहूं जनजतभाशा है । सोगाआपोशा छेर उरे तेरी सेवा, जिनभत जंहा जाशा है।लोणागनाथ निरंन ननाम तुभारा, खोरनडी ज्या खाशा हे । सो गाया रूपहलण वानसें विनति, परए। उभसा हाशा हे । सो ना५॥ ॥
॥ जथनवम पहं ॥
॥ पावापुर महावीर निनेश्वर, चासो वहन नवांगपाणाटेमाहिसरं नन प्रलु हर्शन हेजी, मनमें ज्ञानंहपावांचा परम पुरुष पुरषोत्तम प जी, पातऊदूरपसावांपावाणाशान्दार्ष घोघे पहेरी घोतीयां, वषिभुजगेश जनावां डेशर घोसी लरीय ज्योली, विधिशुं जंगीयां स्था चांपावाणाशासत्तरत्नेह पूल जति सुंदर, रहें सुमृत भावांच
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