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૮ ૩૬૬) स्वाभिरेगावीणाशाभात ग्ज पिता बंधु, सन्ननौन अभरे ॥हर्शन रेज्ञान पैरए, धार आहुलभरेगावीणाशारागद्वेष तोर क्रोध, भान अॅनडाभरेगासने छांडडार भाया, पावै शिवपाभरेगावीणाआलन से लगवंत संत, शरा पढे भामरे ॥ भुनि विनय डीर्त्तिगावे, पावे सुरडामरे गावीणाना
॥ अथ द्वितीय पहं ॥
नव पर ध्यान घरोरे ॥लविनन, नव पहध्यान घरो॥भनव न्यायास्रोङतें, बिङया दूरङरोरेशनवणाशामंत्रनडी जश्यंत्रघ एोरे, घएासन विसरोरे ॥जरिहंताहि नवपः न पडे, पुएयनंडार लरोरे ॥नवणाशानव निधि रिद्ध सिध्धि भंगलभाला, संपहसहि नवरोरेशासालसंह घ्याडी जसिहारी, सुरतईजीन जरोरे ॥ नवना
॥ श्जथ तृतीय पहं ॥
रामएाभुं निनदेव सहा, पैरा उभल तेरे। प्रएाभुं निनहेवनाना भसीया विघ्नन्नत, जानंदृ होत भेरे ॥ प्राणाशाऋषल जन्तिश्री संलव, जलिनंघ्न निनरेश महाना सुभति पद्मश्रीसुपास, ह प्रलुतेरेगाप्रएराणाशापुष्पदंत शीतल श्रेयांस गुन गहेरे । मएना वासुपूज्य विभलग्जनंत, धर्मनगजीनेरे॥ प्राणनाशाशनिकुंथुन रहुभल्सी, मुनिसुव्रत मेरे॥ प्रणानभिनेभी पार्श्वनाथ, वीर धीरर हेरेरा प्राणानासभरत निन नाम सार, घुटत लवईरेशानान्न हवरायननभ पाय, धरए। उभल पैरे । प्राणाया घा
॥ अथ यतुर्थ परं ॥
॥ ज्ञानतो वधार्ध शन्ननालिडे हरजाररे॥मानतोवधा शलगाभरहेवा जेटोन्नयो, ऋषलकुमार रे ॥खानतोनाशाश्त्रेां
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