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________________ ९ १४ ) ॥ अथ रोहिणी तपनुं चैत्यवंदन ॥ ॥ रोड़िएगी तप जाराधियें, श्री श्रीवासुपूज्य ॥ दुःज होहगहूरें रसे, पूल होखे पून्याशा पहेला डीनें वास क्षेप, हतीहीनेंप्रेम मध्यान्हें डरी घोतियां, मनवाया जैमाशा अष्ट प्रहारनी रवि में, पूल नृत्यवानित्रालावें लावना लावियें, जीनें नग्न्म पवित्रा त्रिकुंडालें सेर्घ धूपट्टीप, मलुखाणसडीनें ॥ न्निवर डेरी लस्तिशुं जविस सुजलीनें ॥नान्निवर पूनन्निस्तवन, निननोडीनेंल पान्निवर पहने घ्यार्धमें, नेभनाचे संतापाचा ओड डोड गुएाई सहिये, बीत्तरोत्तर लेघाभान उहे जे विधङरो, तो होने लवनोछेहादशा आर्धिति॥उना ॥ जथ भेडादृशगएाघर यैत्यवंघ्नानि ॥ तत्र ॥ प्रथम घेरलूतिन्छनुं चैत्यवंदन ॥ ॥ जिरे घरी सर्वज्ञनुं, ग्निपासें जावे ॥ भधुरखयएारांची रब्ठ, गौतम जोसावे॥शापयतूतमा थडी, खेडीपने विएासेप वेहश्जरथ विपरीतथी, ङोडेम लव तरशे ॥श घन घ्या मत्रि पहेंखे, भएो तेहलवा ज्ञानविभस घन जातभा, सुजचैतनासहैव ॥॥ छति॥उपा ॥ अथ अग्निलूतिनुं चैत्यवंदन ॥ ॥ उर्मतशो संशय घरी, निन थरों खावे ॥ जग्निलूतिना भेंडरी, तर ते जोषावे ॥१॥ जेङ सुजी रोड छे दुःजी, जेड डिंडरस्वामी ॥ पुरषोत्तम खेडें डरी, ङिमशक्ति पायी ॥ शार्मतएगा पर लावधी थे, सहस लगत भंडाए ॥ज्ञान विभसथी भणियें, बेघ रथ सुप्रभाए। आर्धतिउद्या Jan Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.dot
SR No.003689
Book TitleJain Kavyaprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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