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________________ ( ३३७ ) घुनी नीङशी प्रलुभुजसे, भीटाये सम्म अधेशानन नाशायानानीमोहे हीलेलवोलव, लतडे हे आदेश ॥निनणा॥ ॥ति॥ भोहोल अंधे हेराडे पधारो ॥अंधे देशडे पधारो गंधगाहेशडेनानि हां जनंत सिध्य सार्ध जसतहेछ। सोहि देश तिहारो धनाशा निहां नहीं शेण सोग, लय नहीं चिंतान्कालोपाटए। हेश तिंहारोल अर्धनाशानिनविनय पुरन्नेडी वीनवेळा भुगति वधू चित्त पाशेल अंगात ॥ राग जाएगी।होल तुम सुरतरे सरसे हरसे परसेवाश्री महा रान अश्वसेन नृपनंहन यंहन, हीस रंजन निनशन जेतुभ सुरतरे सरसे हरसे परसे ॥होलनापासिंधु लगवान समता निधान, सर नागत निन रजवारे ॥ सरनावा नाही जेरजज जांहु ग्रहेङी, जमृत सिर रजवासजे॥तुभगा होलणाशा पार्धति॥ 4196 ॥ जंगाली राणभांपघाश्रीनिनरानडे सतर शिजर सरसजने श्रीमाहारानडे सतर शिजर सरस जनेने मांडएगी एलडी लु धन्नमहिमा उरतहे। हांल नरते सुन्नन, अभृत जान, उश्तणाना विविधतान, शुन जेजान, सुरविभान, शोलानस रानते ॥श्रीनिनरा आशा भीभुजवश्शुन लूभिसोहावे ॥ हाल तिहां जेहजान, गुन निधान सुन्ग्स ेजान, विहरभान, मध्यमंड, सुभतिनाथ, पार्श्वनाथ गुए। प्रेाशरा न्ते॥श्रीनिनगाशा उसश हेभडे सुघड मनोहर । हांल विहांनण भगाय छजी सजात, घन सोहान, घंटजन्तु, नादृगन्त, रागडही -हागडी, दुंदुली यवान्ते ॥श्रीन्निगाआभोतागोन खोस जंस सोहायो। हांल तिहां भोती साल, गुएरा रसास, न्गभयास, शुलध्यास, धर्म करत, हुनुभचरत, धनवंत रान्ते॥श्रीन्निनाभावंग देशमें शिजर स्थायी हल निहां जहत गंग Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orth
SR No.003689
Book TitleJain Kavyaprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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