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________________ (२७० ) नस्वरूप रे गा घरघनाशानिनल श्रीशंजेश्वर पासा पूरी लघ्वसोम्बी आशााडीघोशंजेश्वर पुर वासानश घ्यानां होने अघनाशरे ॥ घरगेंहा आगए घर वायड भुनि समुाय ॥हेव चतुर्विधतेमणुएा गाया बांछित डारन तेनाथाय ॥ उरन्डी नभे सहा पायरे॥घर एधनानामरएाथीने भारत होयातेिम समस्या प्रलुने लेयालिव प्रदेशे भसने घोयाप मचंद्र देवस सहे सोयरे ॥ घरों धनापाता ॥ जय श्री धर्मनाथ निनस्तवन ॥ पछली रातना परोड शब्लने राणीने नगाड्या सोनार लो मेहेशी॥ सुरसुजतल घरी नेहाचावीने प्रलुने प्रएामती पाणी लएो।तुमेश्नसरा सरए। पाणाहेिजीने हुं धन्य मानती ॥शएशील ऐशानाथ भारा हीसडाना योशाओए। नागण उहीजे जे वातडी घएगीगानगभेजे सुरनारे सुजासिभक्तां सखन्नजे रातडी शीनाशाक्षएा क्षएा सांलरे भन भांहे ॥ प्रलुलना वयननी चातुरी पाएगीनामोहन प्रभाएान्यायनी वातासु एावाने कुंथर्ध मातुधे ाएगीगाआतघ्नंतर जोसे नाथ ।। सुएारे हरि प्रिया प्रेभथी॥नाएगी तन्ने तलेग्नमरिरे भोलवडी जे दुःज सड़े मेहथी। शएगीनाना घरो घरी सिद्धलो ते ध्यानासही सुज ने हथी शास्वतां ॥शिएणीनातन घेनङ्गुटुजना सुजा अंते छेने अशास्वतां ॥ एीनाचासुखी भेभधरमनाथ बाए ॥ प्रएामीने निन स्थानङगया। एसीनागुएागातां धर्मपंदने आनासरख वंछित डारन थथा। एसीनाशा ॥ जय श्री संलवनिनस्तवन ॥ ॥भनावी तुं मंहरिया भेसावरे ॥ मन मान्या मोहनने॥भेदेशी श्नरिहा नन्म सभयनगतभांरे, शश्य संलवथायरेशासंलवनिन रायनेपालविनन पूले लावें सहाय रे ॥ संलवणाथा हरिङरङमणे Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibran org
SR No.003689
Book TitleJain Kavyaprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages504
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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